दक्षिण-पूर्वी एशियाई राष्ट्रों का संगठन (आसियान) दस
दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों का समूह है, जो आपस में आर्थिक विकास और
समृद्धि को बढ़ावा देने और क्षेत्र में शांति और स्थिरता कायम करने
के लिए भी कार्य करते हैं। इसका मुख्यालय इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में है। आसियान की स्थापना 8 अगस्त, 1967को थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में की गई थी। इसके संस्थापक सदस्य थाईलैंड, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलिपींस और सिंगापुरथे। ब्रूनेई इस संगठन में 1984 में शामिल हुआ और 1995 में वियतनाम। इनके बाद 1997 में लाओस और बर्मा इसके सदस्य बने। 1976 में आसियान की पहली बैठक में बंधुत्व और सहयोग की संधि पर हस्ताक्षर किए गए। 1994 में आसियान ने एशियाई क्षेत्रीय फोरम (एशियन रीजनल फोरम) (एआरएफ) की स्थापना की गई, जिसका उद्देश्य सुरक्षा को बढ़ावा देना था। अमेरिका, रूस, भारत, चीन, जापान और उत्तरी कोरिया सहित एआरएफ के 23 सदस्य हैं।
अपने चार्टर में आसियान के उद्देश्य के बारे में बताया गया है। पहला
उद्देश्य सदस्य देशों की संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और स्वतंत्रता को
कायम रखा जाए, इसके साथ ही झगड़ों का शांतिपूर्ण निपटारा हो।
सेक्रेट्री जनरल, आसियान द्वारा पारित किए प्रस्तावों को लागू करवाने और
कार्य में सहयोग प्रदान करने का काम करता है। इसका कार्यकाल पांच वर्ष का
होता है। वर्तमान में थाईलैंड के सूरिन पिट्स्वान इसके सेक्रेट्री जनरल है। आसियान की निर्णायक बॉडी में राज्यों के प्रमुख होते हैं, इसकी वर्ष में एक बार बैठक होती है।
यो
तो दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों ने 60 के दशक में जब आसियान नाम से अलग गुट
बनाया था, उस समय भारत को भी इसमें आमंत्रित किया गया था, परंतु
गुटनिरपेक्ष विदेश नीति के कारण भारत ने यह प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया था।
सोवियत संघ के पतन के बाद शीतयुद्ध की समाप्ति हो गई और राजनीति व
अर्थनीति, दोनों में विभिन्न देशों ने उदारवादी रवैया अपनाया। इस बीच
आसियान के देशों ने मुख्यत: अमेरिका और यूरोप को अपनी उपभोक्ता वस्तुओं का
निर्यात करके बेशुमार पैसा कमाया। वैसे भी शुरू से अर्थनीति में उदारवादी
रवैया अपनाने के कारण इन देशों में जमकर आर्थिक प्रगति हुई थी, जबकि भारत
में लाइसेंस राज के कारण आर्थिक प्रगति अवरुद्ध हो गई थी, परंतु 90 के दशक
में जब भारत ने तत्कालीन वित्त मंत्री डा. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में देश
में उदारवादी आर्थिक नीति पर चलना शुरू किया तबसे भारत की आर्थिक विकास दर
में वृद्धि शुरू हो गई। इस बीच भारत ने आसियान का सदस्य बनने का कई बार
प्रयास किया, पर हर बार संगठन के कुछ सदस्यों ने यह कहकर टाग अड़ा दी कि
भारत के साथ-साथ पाकिस्तान को भी आसियान का सदस्य बनाना पड़ेगा और तब आए
दिन आसियान के मंच पर भारत और पाकिस्तान का झगड़ा उठता रहेगा, जिससे संगठन
की शांति भंग हो जाएगी। फिर मलेशिया, सिंगापुर, इंडोनेशिया और थाईलैंड ने
भारत का साथ दिया। इन दिनों भारत आसियान का आमंत्रित सदस्य है और शीघ्र ही
इसे पूर्ण सदस्यता मिल जाएगी। हाल ही में 13 अगस्त,2009 को भारत ने आसियन के संग बैंगकॉक में सम्मेलन किया, जिसमें कई महत्त्वपूर्ण समझौते हुए थे। भारतीय अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार मेला 2008, नई दिल्ली में
आसियान मुख्य केन्द्र बिन्दु रहा था। नई व्यापार ब्लॉक के तहत दस देशों की
कंपनियों और कारोबारियों ने मेले में भाग लिया था। थाइलैंड, इंडोनेशिया,
मलेशिया, म्यांमार, वियतनाम, फिलिपींस, ब्रुनेई, कंबोडिया और लाओस आसियान
के सदस्य देश हैं, जिनके उत्पाद व्यापार मेले में खूब दिखे थे।आसियान भारत का चौथा सबसे बडा व्यापारिक भागीदार है। दोनों पक्षों के बीच 2008 में
47 अरब डॉलर का व्यापार हुआ था। फिक्की के महासचिव अमित मित्रा के अनुसार
भारत और आसियान के बीच हुआ समझौता दोनों पक्षों के लिए उत्तम होगा। समझौता
जनवरी 2009 से लागू हुआ था।
अंतरराष्ट्रीय
मुद्रा कोष ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि अब एशियाई देशों में मंदी
का दौर समाप्त होने वाला है। उसने कहा है कि एशियाई देशों में औसत आर्थिक
विकास दर 1.2 प्रतिशत होगी और 2020 में 4.3 प्रतिशत। पिछले दशक में एशियाई
देशों का आर्थिक विकास 6.7 प्रतिशत था। जैसे ही एशियाई देशों में आर्थिक
विकास के गति पकड़ने की बात सामने आई, आसियान देशों ने अपनी-अपनी
अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने के प्रयास तेज कर दिए, ताकि वे फिर से एशियाई
देशों में टाइगर के रूप में गिने जाने लगें तथा मंदी की गिरफ्त से निकल रहे
अमेरिका से निर्यात के अधिक से अधिक आर्डर प्राप्त कर सकें। गत 25 अक्टूबर
को थाईलैंड में आसियान देशों और उनके आमंत्रित सदस्यों की एक महत्वपूर्ण
बैठक हुई, जिसमें एशिया के देशों की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए
तरह-तरह के सुझाव दिए गए। सदस्यों ने चीन, भारत और इंडोनेशिया जैसे
विकासशील देशों के आर्थिक विकास की तारीफ की। अधिकतर सदस्यों का यह विचार
था कि आसियान के सदस्य और आमंत्रित सदस्य यूरोपीय संघ की तरह आयात शुल्क
में भारी कमी कर दें। इससे निर्यात और आयात करने वाले दोनों देशों को लाभ
पहुंचेगा तथा उद्योगों और अंतरराष्ट्रीय व्यापार को गति मिलेगी। जापानी
प्रधानमंत्री हतोयामा तो कुछ ज्यादा ही उत्साहित थे। उन्होंने कहा कि समस्त
एशियाई देशों में यूरोपीय संघ की तरह एक ही मुद्रा चलनी चाहिए और उन्हें
आपस में एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए, जिससे आसियान संसार को नेतृत्व प्रदान
कर सके। यह इतना आसान नहीं लगता। आसियान के मंच से लोकतंत्र के पक्षधर कुछ
देश परोक्ष रूप से म्यांमार के सैनिक शासन की आलोचना करते हैं। यह बात
म्यांमार को नागवार गुजरती है। आसियान के सदस्य देशों ने कई बार अपने
प्रतिनिधियों को सैनिक शासकों से बात करने तथा उन्हें यह समझाने के लिए
म्यांमार भेजा कि यदि म्यांमार में लोकतंत्र की बहाली हो तो इसमें उनका ही
भला है, परंतु वहां के शासकों के कानों में जूं तक नहीं रेंगी।
आसियान
के दो देशों-थाईलैंड और कंबोडिया में हाल के महीनों में कटुता बढ़ी है।
थाईलैंड की आंतरिक स्थिति दिनोंदिन खराब होती जा रही है। थाईलैंड के
राजनेता अकसर आपस में लड़ते-झगड़ते रहे हैं। जब-जब उनमें लड़ाई होती है, वे
देश के राजा भूमिबोल के पास जाते हैं। थाईलैंड की जनता भूमिबोल को भगवान
की तरह पूजती है। राजा भूमिबोल की उम्र 80 साल से अधिक है। वह गंभीर रूप से
बीमार हैं। थाईलैंड की जनता को यह डर सता रहा है कि यदि भूमिबोल को कुछ हो
गया तो सत्ता की बागडोर कौन संभालेगा। बहुत संभव है कि थाईलैंड में
गृहयुद्ध छिड़ जाए। इंडोनेशिया कह रहा है कि आसियान का भविष्य अंधकारमय है,
क्योंकि इसमें म्यांमार, कंबोडिया और वियतनाम जैसे देश हैं, जहां लोकतंत्र
सही रूप से फलफूल नहीं रहा है। संक्षेप में, यह सोचना कि यूरोपीय संघ की
तरह आसियान भी एशियाई देशों का सिरमौर संगठन बना रहेगा, यथार्थ से परे है।
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