म्यांमार
में लोकतंत्र की बहाली के प्रयास शुरू होने के साथ ही अमेरिका-यूरोप ने
उसके संबंध में अपनी नीतियों पर पुनर्विचार शुरू कर दिया है. अमेरिका की ओर
से उस पर आर्थिक प्रतिबंधों में ढिलाई देने का बयान आने लगा है. हिलेरी
क्लिंटन ने म्यांमार यात्रा के दौरान इसका संकेत भी दे दिया है. अमेरिका
एशिया पैसिफिक की ओर रुख़ कर रहा है. यूरोप भी अमेरिका का अनुसरण करेगा.
चीन भी नई रणनीति बनाएगा. पश्चिमी देशों की निवेश करने की नीति के साथ ही
यहां भारत के लिए प्रतिस्पर्द्धा का बढ़ना लाज़िमी है. ऐसे समय में भारत को
म्यांमार की ओर तेजी से अपना क़दम बढ़ाना चाहिए.
आंग
सान सू की रिहाई और उनकी पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी को चुनाव में
भाग लेने की अनुमति मिलने के साथ ही ऐसा लगने लगा कि म्यांमार अब लोकतंत्र
के लिए तैयार हो गया है. म्यांमार में 46 संसदीय सीटों के लिए चुनाव हुए.
अटकलें लगाई जा रही थीं कि यह चुनाव निष्पक्ष तरीक़े से कराया जाएगा या
नहीं. सू ने भी कहा था कि चुनाव में गड़बड़ी पैदा करने की कोशिश की जा रही
है, लेकिन चुनाव निष्पक्ष हुआ. इसलिए नहीं कि चुनाव में अंतरराष्ट्रीय
पर्यवेक्षक बुलाए गए, बल्कि इसलिए कि 46 में से 43 सीटें आंग सान सू की
पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी को मिली. अगर चुनाव में धांधली की जाती तो
जो सीटें एनएलडी को मिलीं, वे सत्तारूढ़ दल यूएसडीपी को मिली होतीं. स्वयं
सू ने भी संसदीय उपचुनाव में जीत हासिल की और उन्हें 75 फीसदी मत मिले.
हालांकि उनके दल की इस जीत से सरकार के ऊपर कोई विशेष फर्क़ नहीं पड़ेगा,
लेकिन इस चुनाव से यह लगने लगा कि 2015 का चुनाव भी निष्पक्ष होगा और जल्दी
ही म्यांमार में लोकतांत्रिक सरकार का गठन होगा. म्यामांर सरकार के इस
फैसले के बाद अमेरिका के साथ-साथ यूरोपीय देशों ने म्यांमार के प्रति अपनी
नीति बदलने का संकेत दे दिया है. एक तरफ सू विदेश यात्राएं कर रही हैं तो
दूसरी तऱफ दूसरे देश के मंत्री एवं प्रशासक म्यांमार की यात्रा कर रहे हैं.
लोकतंत्र न होने के कारण जो प्रतिबंध म्यांमार पर लगाए गए थे, उनमें ढील
देने या फिर उन्हें समाप्त करने की बात कही जा रही है. ऐसे में भारत के लिए
भी ज़रूरी है कि वह म्यांमार की ओर विशेष ध्यान दे. लोकतंत्र न होने के
कारण म्यांमार से भारत के वैचारिक मतभेद रहे हैं, लेकिन अब जिस तरह से
म्यांमार में राजनीतिक परिवर्तन हो रहे हैं, ये मतभेद भी जल्द दूर होने की
उम्मीद है. भारत के साथ म्यांमार के संबंध कुछ समय को छोड़कर अच्छे रहे
हैं, लेकिन इस संबंध को मज़बूत करने की आवश्यकता है.
भारत
के उत्तर पूर्वी राज्यों के साथ म्यांमार की सीमा लगी हुई है. इन राज्यों
में अलगाववादी आंदोलन चल रहे हैं. अलगाववादियों के लिए म्यांमार एक
सुरक्षित देश रहा है, जहां से वे अपनी गतिविधियों का संचालन करते हैं. इस
वजह से भारत को म्यांमार के साथ वैसे ही संंबंधों की आवश्यकता है, जैसे
उसके भूटान के साथ हैं. अगर म्यांमार भी भूटान की तरह इन अलगाववादियों के
विरुद्ध भारत का साथ दे तो उत्तर पूर्वी भारत में चल रहे अलगाववादी आंदोलन
को कमज़ोर किया जा सकता है. हालांकि अभी भी म्यांमार भारत का साथ दे रहा
है, लेकिन जितनी शिद्दत से साथ देने की आवश्यकता है, उतना नहीं दे पा रहा
है. म्यांमार को अपने साथ लाकर भारत मणिपुर एवं नागालैंड जैसे राज्यों में
शांति स्थापित कर सकता है. चूंकि म्यांमार की सीमाएं चीन एवं बांग्लादेश के
साथ भी हैं, इसलिए भारत को और भी सावधानी बरतने की आवश्यकता है. चीन ने
म्यांमार में काफी निवेश किया है और वह म्यांमार का दूसरा बड़ा व्यापारिक
साझीदार है. चीन एवं म्यांमार के बीच सड़क परिवहन की व्यवस्था है और भारत
को घेरने की अपनी नीति के तहत चीन म्यांमार का इस्तेमाल भी करता रहा है.
हालांकि म्यांमार इससे इंकार करता रहा है कि उसके यहां उत्तर पूर्वी भारत
के अलगाववादी शरण लेते हैं. वह इस बात को भी अस्वीकार करता है कि चीन उसका
इस्तेमाल भारत के विरुद्ध अपने हितों की पूर्ति के लिए करता है.
म्यांमार
बंगाल की खाड़ी में स्थित है, भारत के अंडमान निकोबार द्वीप समूह से उसकी
दूरी काफी कम है. बंगाल की खाड़ी भारत के जलीय व्यापार की रीढ़ है. बंगाल
की खाड़ी से होने वाले भारतीय व्यापार को म्यांमार प्रभावित कर सकता है.
इसके अलावा भारत म्यांमार के सहयोग से दक्षिण पूर्व एशिया के अन्य देशों,
जैसे वियतनाम, लाओस, थाईलैंड एवं कंबोडिया आदि के साथ जल अथवा सड़क मार्ग
से व्यापार कर सकता है. आसियान देशों के साथ व्यापारिक संबंध बढ़ाने में भी
म्यांमार की भूमिका भारत के लिए महत्वपूर्ण होगी. म्यांमार के साथ संबंध
चीन के बंगाल की खाड़ी में बढ़ते प्रभाव को रोकने का एक आधार हो सकता है.
म्यांमार के सहयोग से भारत नशीले पदार्थों की तस्करी पर नियंत्रण करने में
भी सफल हो सकता है. म्यांमार के रास्ते भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में
नशीले पदार्थों की तस्करी होती है, जो कि भारत के दूसरे क्षेत्रों में भी
भेजे जाते हैं. ग़ौरतलब है कि नशीले पदार्थों के व्यापार से हासिल धन का
इस्तेमाल अलगाववादियों द्वारा हथियार ख़रीदने में किया जाता है, जिनके
ज़रिये वे आतंक फैलाते हैं. इन तमाम कारणों के चलते म्यामांर भारत के लिए
काफी महत्वपूर्ण है.
हालांकि
भारत और म्यांमार के बीच व्यापार सही दिशा में है. भारत इसका चौथा बड़ा
व्यापारिक साझीदार है और भारत ने म्यांमार की आधारभूत संरचना के निर्माण
में भी निवेश किया है, लेकिन अब म्यांमार में परिस्थितियां बदलने वाली हैं.
जैसे ही म्यांमार में लोकतंत्र लाने की कवायद शुरू हुई, अमेरिका-यूरोप ने
उससे संबंध बढ़ाने शुरू कर दिए. अमेरिकी विदेश मंत्री ने एक महीने के भीतर
आंग सान सू के साथ दो बार मुलाक़ात की. हिलेरी क्लिंटन ने म्यांमार का दौरा
भी किया. उन्होंने विश्व बैंक एवं आईएमएफ के ज़रिये आर्थिक सहायता देने और
म्यांमार में शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए 1.2 मिलियन डॉलर की
परियोजनाओं की भी घोषणा की. अमेरिका म्यांमार संबंधी अपनी नीति में बदलाव
कर रहा है. वह वहां चीन के बढ़ते प्रभाव से चिंतित है. अमेरिका अब एशिया
पैसिफिक में अपना वर्चस्व चाहता है, ताकि वह चीन को मात दे सके. इसके लिए
वह म्यांमार के साथ संबंधों में सुधार करेगा और बड़े पैमाने पर निवेश की
कोशिश करेगा. इसके अलावा यूरोप के अन्य देश भी अमेरिका के पीछे-पीछे
म्यांमार आएंगे. इन देशों के प्रवेश के साथ ही चीन का सतर्क होना निश्चित
है. चीन भी अपनी रणनीति में बदलाव करेगा. ऐसे में भारत को म्यांमार में
अपनी स्थिति मज़बूत करने के लिए एक साथ कई देशों के साथ प्रतिस्पर्द्धा
करनी होगी. इसके लिए भारत को पहले से ही तैयार रहना चाहिए. जब तक
अमेरिका-यूरोप के निवेश की रफ्तार तेज हो, तब तक भारत को म्यांमार में अपनी
स्थिति मज़बूत कर लेने की ज़रूरत है. म्यांमार में ऊर्जा की अपार
संभावनाएं हैं. भारत वहां के गैस भंडारों का उपयोग सुविधाजनक तरीक़े से कर
सकता है, म्यांमार से पाइप लाइन के सहारे गैस ला सकता है. भारत के
पूर्वोत्तर राज्यों के विकास के लिए भी म्यांमार के साथ संबंध बेहतर करना
ज़रूरी है. जो परियोजनाएं स्वीकृत हो चुकी हैं, उन्हें शीघ्र पूरा करने की
ज़रूरत है. कालादान परियोजना पर 2008 से ही काम चल रहा है, लेकिन जिस
तीव्रता की उम्मीद की जा रही थी, वह नहीं दिखाई पड़ रही है. इस परियोजना के
तहत भारत कालादान नदी के रास्ते पूर्वोत्तर राज्यों में सामान भेज सकता
है. कुछ समय पहले ही म्यांमार ने इरावदी नदी पर चीन के सहयोग से बनाए जा
रहे डैम पर प्रतिबंध लगाया है, क्योंकि उसका विरोध हो रहा था. इसके बावजूद
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि चीन म्यांमार के प्राकृतिक संसाधनों
का भरपूर दोहन कर रहा है. चीन नहीं चाहेगा कि म्यांमार में भारत की आर्थिक
गतिविधियां बढ़ें, लेकिन भारत को इसके लिए प्रयास करने होंगे. भारत की ओर
से कोशिशें जारी हैं, लेकिन उनमें और तेजी लाने की ज़रूरत है, वरना देखते
ही देखते एक और पड़ोसी देश चीन के साथ चला जाएगा, जिसका खामियाजा भारत को
भुगतना पड़ेगा.
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