Sunday, 14 July 2013

आधुनिक राजनीति की कूटनीति :एक विवेचन


आधुनिक राजनीति का एक शस्त्र है कूटनीति, जिसमें व्यक्ति जो कहता है वह उसका मंतव्य नहीं होता अपितु कुछ अन्य होता है. मानवीय दृष्टि से यह एक अनैतिकता है अतः माना व्यवहार में वांछनीय नहीं है. वस्तुतः कूटनीति का अर्थ है कटु सत्य न बोलना और उसे मधुरता के साथ प्रस्तुत करना. किन्तु व्यवहार में कूटनीति की ओट में सरासर झूंठ बोले जाते हैं और सहन किये जाते हैं जबकि दोनों पक्ष यह जानते हैं. क्योंकि दोनों ही यही खेल खेल रहे होते हैं. अर्थात दोनों एक दूसरे का छल जानते हैं, तब भी एक दूसरे को मीठी बातों में उलझाने के प्रयास करते हुए स्वयं को दूसरे द्वारा उत्पन्न भ्रम से बचने का प्रयास करते रहते हैं.

हम सभी यह जानते हैं कि किसी के साथ छल करना तभी संभव होता है जब वह इसके बारे में अनभिज्ञ हो. दूसरे पक्ष को छल का ज्ञान होते ही छल निष्फल हो जाता है. तथापि कूटनीति में ऐसा निष्फल छल किया जाता है. इससे किसी को कोई लाभ तो नहीं होता किन्तु इसके कारण मानव स्वभाव में छल करना एक सर्वमान्य प्रक्रिया के रूप में स्वीकार कर लिया गया है.

वैज्ञानिक शोधों से तथा सामान्य अनुभव से यह पाया गया है कि जो गुण-धर्म कुछ पीढ़ियों तक स्वभाव में स्वीकार्य होता रहता है, वह जीनों में भी समाहित होकर एक स्थायी मानवीय गुण-धर्म बन जाता है. कूटनीति राजनीति का एक प्राचीन खेल है और अनेक मानव पीढ़ियों से राजनैतिक क्षेत्र में सर्वमान्य रहा है. राजनीति सार्वजनिक जीवन को प्रभावित करती है और जन-साधारण में अपने गुण-धर्म उत्प्रेरित करती है. इसलिए कूटनीति के माध्यम से छल-कपट जन-सामान्य की जीनों में समाहित हो गया है और एक स्थायी मानवीय गुण बन गया है. इससे मानवीय चरित्र का हनन हुआ है जो इसकी परिभाषा में समाहित हो चुका है.

चारित्रिक पतन मानव जीवन को अनेक प्रकार से दुष्प्रभावित करता है. सर्वोपरि यह दुष्प्रभाव मानव सभ्यता विकास को अवरोधित करता है. सभ्यता विकास का सम्बन्ध सकल मानव जाति से है, न कि किसी व्यक्ति से. इसका लाभ भी सकल मानव जाति को होता है न कि किसी एक मनुष्य अथवा वर्ग को. इसलिए कोई भी स्वार्थी व्यक्ति इसके लिए योगदान नहीं करता, यह केवल परोपकार की भावना से मानव समाज के प्रति निष्ठां के कारण होता है. जब बहुल मानव समाज चारित्रिक पतन के कारण स्वार्थ के गर्त में निमग्न हो तो मानव सभ्यता के विकास हेतु कोई अपना योगदान नहीं कर सकता.

नित्य प्रति के अनुभव से एक उदाहरण प्रस्तुत है. भारतीय राजनीति के प्रत्येक स्तर पर स्वार्थी तत्वों का बोलबाला है. तथापि देश में कुछ सज्जन व्यक्ति भी हैं जो देश और समाज के प्रति निष्ठावान हैं. अपने सम्पुर्ण निष्ठां के साथ वे देश की राजनीति में भाग लेते हैं और जन-सामान्य द्वारा नकार दिए जाते हैं. इसके बाद उनके पास केवल दो मार्ग शेष रह जाते हैं - अन्य राजनेताओं की तरह अपने निष्ठा को ताक पर रख कर छल-कपट को ही अपना लें और राजनीति अथवा किसी अन्य क्षेत्र में सफलता प्राप्त करें, अथवा अपने निष्ठां के साथ अपने घर बैठें और सार्वजनिक जीवन एवं हितचिंतन से दूर रहें. दोनों ही प्रकार से समाज अथवा देश के हित में उनका कोई उपयोग नहीं हो पाता.   

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