Monday, 15 July 2013

शिमला समझौता:एक मूल्यांकन


शिमला समझौते के 40 साल
































चालीस साल पहले ठीक 3 जुलाई  के दिन भारत-पाकिस्तान के बीच शिमला समझौता हुआ था। सन 1972 में भारत-पाक युद्ध के बाद शिमला में एक संधि पर हस्ताक्षर हुए, जिसे शिमला समझौता कहा जाता है। इसमें भारत की तरफ से इंदिरा गाधी और पाकिस्तान की तरफ से जुल्फिकार अली भुट्टो शामिल थे। बहरहाल, कल यानी बुधवार को भारत-पाक के बीच विदेश सचिव स्तर वार्ता शुरू होगी। आतंकवादी हमले में पाकिस्तान सरकार की भूमिका और मौत की सजा पाए सरबजीत से संबंधित मुद्दों का असर बुधवार से शुरू हो रही दो दिवसीय विदेश सचिव स्तरीय वार्ता पर पड़ सकता है।

कल भरोसा बढ़ाने के उपायों पर चर्चा होगी...

भारत के विदेश सचिव रंजन मथाई और उनके पाकिस्तानी समकक्ष जलील अब्बास जिलानी इस दौरान शाति और सुरक्षा, विश्वास बहाली, जम्मू एवं कश्मीर और दोस्ताना लेन-देन जैसे मुद्दों पर चर्चा करने वाले हैं। वार्ता के लिए जिलानी मंगलवार को यहा पहुंचे। वार्ता के मुद्दे हालाकि पहले ही तय हो चुके थे, लेकिन 26/11 आतंकवादी हमले के एक प्रमुख सूत्रधार द्वारा हमले में पाकिस्तान सरकार की भूमिका का खुलासा करने और भारत द्वारा पाकिस्तान पर इस भूमिका को स्वीकार करने के लिए दबाव बनाने से माहौल में बदलाव आ गया है। विदेश सचिव स्तरीय वार्ता में आतंकवाद का मसला छाए रहने की संभावना है। ऐसा अबू जिंदाल के ताजा खुलासों के मद्देनजर कहा जा रहा है। हालाकि, बातचीत के दौरान आतंकवाद का मसला विचारणीय नहीं है। लेकिन इस दौरान भरोसा बढ़ाने के कदमों पर चर्चा होगी, जिसके चलते पाक को 26/11 के दोषियों को जल्द सजा दिला कर भरोसा बढ़ाने की जरूरत बताई जाएगी। भारत पर दबाव बढ़ाने के लिए पाकिस्तान सियाचिन और सर क्रीक समझौता जल्द करने की बात भी कहेगा।

चालीस साल पहले किया था भरोसा.......

जुलफिकार अली भुट्टो ने 20 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तान के राष्ट्रपति का पदभार संभाला। उन्हें विरासत में एक टूटा हुआ पाकिस्तान मिला। सत्ता सभालते ही भुट्टो ने यह वादा किया कि वह शीघ्र ही बाग्लादेश को फिर से पाकिस्तान में शामिल करा लेंगे। पाकिस्तानी सेना के अनेक अधिकारियों को, देश की पराजय के लिए उत्तरदायी मान कर, बरखास्त कर दिया गया था। कई महीने तक चलने वाली राजनीतिक-स्तर की बातचीत के बाद जून, 1972 के अंत में शिमला में भारत-पाकिस्तान शिखर बैठक हुई।

ये थे समझौते के बिंदु ......

इंदिरा गाधी और भुट्टो ने, अपने उच्चस्तरीय मंत्रियों और अधिकारियों के साथ, उन सभी विषयों पर चर्चा की, जो 1971 के युद्ध से उत्पन्न हुए थे। साथ ही उन्होंने दोनों देशों के अन्य प्रश्नों पर भी बातचीत की। इनमें मुख विषय थे, युद्ध बंदियों की अदला-बदली, पाकिस्तान द्वारा बाग्लादेश को मान्यता का प्रश्न, भारत और पाकिस्तान के राजनयिक संबंधों को सामान्य बनाना, व्यापार फिर से शुरू करना और कश्मीर में नियंत्रण रेखा स्थापित करना। लंबी बातचीत के बाद भुट्टो इस बात के लिए सहमत हुए कि भारत-पाकिस्तान संबंधों को केवल द्विपक्षीय बातचीत से तय किया जाएगा। शिमला समझौते के अंत में एक समझौते पर इंदिरा गाधी और भुट्टो ने हस्ताक्षर किए।

स्थाई मित्रता का किया था वादा .........

इनमें यह प्रावधान किया गया कि दोनों देश अपने संघर्ष और विवाद समाप्त करने का प्रयास करेंगे, और यह वचन दिया गया कि उप-महाद्वीप में स्थाई मित्रता के लिए कार्य किया जाएगा।

1.सीधी बात करेंगे :: इन उद्देश्यों के लिए इंदिरा गाधी और भुट्टो ने यह तय किया कि दोनों देश सभी विवादों और समस्याओं के शातिपूर्ण समाधान के लिए सीधी बातचीत करेंगे और स्थिति में एकतरफा कार्यवाही करके कोई परिवर्तन नहीं करेंगे। वे एक दूसरे के विरुद्घ न तो बल प्रयोग करेंगे, न प्रादेशिक अखण्डता की अवेहलना करेंगे और न एक दूसरे की राजनीतिक स्वतंत्रता में कोई हस्तक्षेप करेंगे। दोनों ही सरकारें एक दूसरे देश के विरुद्घ प्रचार को रोकेंगी और समाचारों को प्रोत्साहन देंगी, जिनसे संबंधों में मित्रता का विकास हो। दोनों देशों के संबंधों को सामान्य बनाने के लिए सभी संचार संबंध फिर से स्थापित किए जाएंगे।

2.आवागमन की सुविधाएं :: आवागमन की सुविधाएं स्थापित की जाएंगी ताकि दोनों देशों के लोग असानी से आ-जा सकें और घनिष्ठ संबंध स्थापित कर सकें।

3.व्यापार बढ़ाएंगे :: जहा तक संभव होगा व्यापार और आर्थिक सहयोग शीघ्र ही फिर से स्थापित किए जाएंगे।

4.सहयोग करेंगे :: विज्ञान और संस्कृति के क्षेत्र में आपसी आदान-प्रदान को प्रोत्साहन दिया जाएगा।

5.नियंत्रण रेखा :: स्थाई शाति के हित में दोनों सरकारें इस बात के लिए सहमत हुई कि भारत और पाकिस्तान दोनों की सेनाएं अपने-अपने प्रदेशों में वापस चली जाएंगी। दोनों देशों ने 17 सितंबर, 1971 की युद्ध विराम रेखा को नियंत्रण रेखा के रूप में मान्यता दी और यह तय हुआ कि इस समझौते के बीस दिन के अंदर सेनाएं अपनी-अपनी सीमा से पीछे चली जाएंगी। यह तय किया गया कि भविष्य में दोनों सरकारों के अध्यक्ष मिलते रहेंगे और इस बीच अपने संबंध सामान्य बनाने के लिए दोनों देशों के अधिकारी बातचीत करते रहेंगे।

किसे हुआ फायदा-किसे नुकसान ? ......

भारत में शिमला समझौते का आलोचकों ने विरोध किया। कहा कि यह समझौता तो एक प्रकार से पाकिस्तान के सामने भारत का समर्पण था क्योंकि भारत की सेनाओं ने पाकिस्तान के जिन प्रदेशों पर अधिकार किया था अब उन्हें छोड़ना पड़ा। परंतु शिमला समझौते का सबसे बड़ा लाभ यह हुआ कि दोनों देशों ने अपने विवादों को आपसी बातचीत से निपटाने का निर्णय किया। इसका यह अर्थ हुआ कि कश्मीर विवाद को अंतरराष्ट्रीय रूप न देकर अन्य विवादों की तरह आपसी बातचीत से सुलझाया जाएगा।

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