संविधान
के निर्माण के वक़्त ही यह तय हुआ कि देश को न केवल प्रधानमंत्री, बल्कि
राष्ट्रपति भी मिले. संविधान के अनुच्छेद 52 के अनुसार, भारत का एक
राष्ट्रपति होना अनिवार्य है, जिसका कार्यकाल पांच वर्ष का हो. राष्ट्रपति
पद के प्रत्याशी को 15,000 रुपये की ज़मानत राशि के साथ अपना नामांकन
दाखिला करना होता है. इसके साथ ही उसे कम से कम पचास मतदाताओं
(सांसद/विधायक) के प्रस्ताव और समर्थन की ज़रूरत होती है. राष्ट्रपति चुनाव
भी चुनाव आयोग ही कराता है.
एक व्यक्ति को राष्ट्रपति बनने के लिए कुछ अनिवार्य शर्तें हैं, जिनमें प्रमुख हैं:-
- वह भारत का नागरिक हो.
- उसने कम से कम 35 वर्ष की आयु पूर्ण कर ली हो.
- वह लोकसभा का सदस्य बनने की पात्रता रखता हो.
- राष्ट्रपति बनने के बाद उम्मीदवार संसद के किसी भी सदन या राज्यों की किसी भी विधानसभा/विधान परिषद का सदस्य नहीं होना चाहिए.
- वह भारत सरकार के अंतर्गत किसी भी लाभ के पद पर न हो.
भारत
में राष्ट्रपति का चयन सीधे-सीधे जनता नहीं करती है, लेकिन वह अप्रत्यक्ष
रूप से इस चुनाव में सम्मिलित होती है. राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को जनता
का वोट उसके प्रतिनिधि यानी क्षेत्र के विधायक के ज़रिए मिलता है.
राष्ट्रपति के चुनाव में लोकसभा, राज्यसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं के
निर्वाचित सदस्य मतदान करते हैं. राष्ट्रपति चुनाव में कोई भी पार्टी
व्हिप नहीं जारी करती है यानी यह ज़रूरी नहीं है कि किसी भी पार्टी के
सदस्य उस पार्टी द्वारा प्रस्तावित उम्मीदवार को ही वोट करेंगे. चूंकि
राष्ट्रपति चुनाव में गुप्त मतदान होता है, इसलिए इसका खुलासा नहीं हो पाता
है कि किस सांसद/विधायक ने किस उम्मीदवार को वोट दिया. देश में छह राज्य
ऐसे हैं, जहां विधानसभा के साथ-साथ विधान परिषद भी है, लेकिन इस चुनाव में
केवल राज्यों के निचले सदन (विधानसभा) के सदस्य ही मतदान में भाग ले सकते
हैं. देश में सभी राज्यों में उच्च सदन (विधान परिषद) नहीं है. सभी राज्यों
में एकरूपता और समानता बनी रहे, इसलिए केवल विधानसभा के सदस्यों को ही
राष्ट्रपति के चुनाव में मत देने का प्रावधान है. विधानसभा में ऐसे विधायक,
जो राज्यपाल द्वारा मनोनीत किए जाते हैं, वे किसी क्षेत्र विशेष की जनता
का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं, इसलिए राष्ट्रपति के चुनाव में उन्हें
मतदान का अधिकार नहीं होता है. ठीक यही नियम लोकसभा और राज्यसभा में मनोनीत
सदस्यों पर लागू होता है. राज्यसभा के वे सदस्य, जिन्हें अपने क्षेत्र में
विशिष्ट पहचान और स्थान बनाने की वजह से मनोनीत किया गया है, भी
राष्ट्रपति के चुनाव में अपना वोट नहीं डाल सकते. उदाहरण के तौर पर इस बार
के राष्ट्रपति चुनाव में राज्यसभा सदस्य क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर, अभिनेत्री
रेखा एवं अनु आगा अपना वोट नहीं डाल सकेंगे. इसी तरह लोकसभा में मनोनीत
किए जाने वाले एंग्लो इंडियन सदस्य भी राष्ट्रपति चुनाव में मतदान नहीं कर
सकते हैं.
अब यह जानते हैं कि आ़िखर राष्ट्रपति चुनाव में मतदान किस प्रकार होता है:-
भले
ही 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या 1.2 अरब है, लेकिन अभी भी
भारत में चुनावों के लिए 1971 की जनगणना के आंकड़ों को आधार माना जाता है.
2026 तक 1971 की जनगणना के आधार पर ही चुनाव संपन्न होंगे. राष्ट्रपति
चुनाव के लिए ़खास प्रकार का फार्मूला तय किया गया है, जिससे बिना किसी
पक्षपात या गड़बड़ी के यह चुनाव सही तरीक़े से संपन्न हो सके. इसके लिए यह
जानना ज़रूरी है कि राष्ट्रपति चुनाव में प्रत्येक मतदाता का मत एक मत के
रूप में नहीं गिना जाता है. सांसदों के वोट की वैल्यू तो समान होती है, मगर
हर राज्य के विधायक के वोट की वैल्यू अलग-अलग होती है. दोनों सदनों के
निर्वाचित सांसदों के वोट की वैल्यू सभी राज्यों के विधायकों की कुल वोट
वैल्यू के बराबर होती है.
राष्ट्रपति चुनाव में इस्तेमाल होने वाले फार्मूले के आधार पर वोट वैल्यू निकालने के तीन चरण हैं:-
- सबसे पहले हर राज्य के विधायक के वोट की वैल्यू निकाली जाती है.
- विधायकों की संख्या के आधार पर उस राज्य के कुल वोटों की वैल्यू निकाली जाती है.
- देश के कुल विधायकों की संख्या और वोट वैल्यू के आधार पर लोकसभा और राज्यसभा के सांसदों के वोट की वैल्यू निकाली जाती है.
इस
प्रक्रिया से गुज़रते हुए राष्ट्रपति चुनाव में पड़ने वाले कुल वोटों की
गणना की जाती है. चुनाव में पड़ने वाले कुल वोटों की वैल्यू निकाली जा सकती
है.
- राज्य के विधायक के वोट की वैल्यू यानी संख्या निकालने के लिए:- 1971 की जनगणना के अनुसार, राज्य की जनसंख्या को वहां की विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों की संख्या से भाग दिया जाए, परिणाम में जो भी संख्या आए, उसे फिर से 1000 से भाग दिया जाए. इसके बाद जो परिणाम निकलेगा, वह उस राज्य के एक विधायक के वोट की वैल्यू होगी. इस तरह प्रत्येक राज्य के विधायकों के वोट की वैल्यू निकाली जाती है.
- राज्य की कुल वोट वैल्यू निकालने के लिए:- राज्य के कुल विधायकों के वोटों की वैल्यू निकालने के लिए एक विधायक के वोट की वैल्यू को राज्य विधानसभा के कुल विधायकों की संख्या से गुणा किया जाए. इससे जो परिणाम आएगा, वह उस राज्य का कुल वोट होगा. इसी तरह हर राज्य अपनी भागीदारी राष्ट्रपति चुनाव में सुनिश्चित करता है.
- सांसदों के वोट की वैल्यू निकालने के लिए:- सांसदों के वोट की वैल्यू निकालने के लिए संसद के निर्वाचित सदस्यों की संख्या को जोड़ते हैं. लोकसभा और राज्यसभा के निर्वाचित सदस्यों को जोड़कर जो परिणाम आए, उससे राज्यों के कुल वोट में भाग देते हैं. इससे जो परिणाम आए, वह एक सांसद के वोट की वैल्यू होगी. कुल सांसदों के वोटों की वैल्यू निकालने के लिए कुल सांसदों की संख्या को एक सांसद के वोट की वैल्यू से गुणा करते हैं. अब राष्ट्रपति चुनाव में मतदाताओं के वोटों की वैल्यू निकालने के लिए कुल सांसदों और कुल विधायकों के वोटों की वैल्यू जोड़ेंगे, जो परिणाम आए, वह मतदान में कुल पड़ने वाले वोटों की संख्या होगी.
नियम
यह है कि राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार व्यक्ति को चुनाव जीतने के लिए 50
प्रतिशत से ज़्यादा वोट पाना आवश्यक होता है. मतलब यह कि 50 प्रतिशत के
अलावा 1 और वोट उम्मीदवार के पक्ष में आना ज़रूरी है. राष्ट्रपति पद का
चुनाव मल्टी कैंडिडेट इलेक्शन होता है यानी इस चुनाव में दो से ज़्यादा
उम्मीदवार खड़े हो सकते हैं, इसलिए ज़्यादातर यह संभव नहीं है कि किसी भी
उम्मीदवार को निर्वाचन के लिए 50 प्रतिशत से ज़्यादा वोट मिल सकें. इसलिए
ट्रांसफरेबल वोट सिस्टम का प्रावधान है. देश के छठवें राष्ट्रपति नीलम
संजीव रेड्डी इस मामले में अपवाद रहे हैं. वह ऐसे राष्ट्रपति हुए, जिनके
खिलाफ कोई अन्य प्रत्याशी खड़ा नहीं हुआ था और इसीलिए वह निर्विरोध यानी
अनअपोज्ड राष्ट्रपति बने थे. एक सही उम्मीदवार चुनने का एक खास तरीक़ा है,
जिसे उदाहरण के साथ समझते हैं.
सबसे पहले यह जान लें कि राष्ट्रपति चुनाव में प्रिफ्रेंसियल सिस्टम वोटिंग होता है यानी मतदाताओं को सभी प्रत्याशियों को अपनी पसंद के क्रम के अनुसार वोट करना ज़रूरी होता है. मान लें कि 4 लोग अ, ब, स, द राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार हैं, उन्हें सभी मतदाता अपनी इच्छा से पहली पसंद, दूसरी पसंद, तीसरी और फिर चौथी पसंद के क्रम के अनुसार वोट देंगे. मान लें कि इनमें अ को 30 प्रतिशत वोट मिले, ब को 12 प्रतिशत वोट मिले, स को 40 प्रतिशत वोट मिले और द को 18 प्रतिशत वोट मिले. ऐसे में सबसे कम वोट पाने वाले प्रत्याशी को बाहर कर दिया जाता है. बाहर किए गए उम्मीदवार को मिले वोटों को उसमें वर्णित सेकेंड प्रिफ्रेंस के आधार पर अन्य उम्मीदवारों के वोटों में शामिल कर दिया जाता है. एलिमिनेशन की यह प्रक्रिया तब तक जारी रहती है, जब तक किसी भी उम्मीदवार को 50 प्रतिशत से ज़्यादा वोट न मिल जाएं. 50 प्रतिशत से ज़्यादा वोट पाने वाले प्रत्याशी को निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है. आज तक भारत में राष्ट्रपति निर्वाचन की प्रक्रिया में एक बार ही दूसरे दौर की गिनती की गई है. 1969 में हुए चुनाव में वोटों की गिनती सेकेंड प्रिफ्रेंस के हिसाब से हुई थी. इसके बाद वी वी गिरि निर्वाचित घोषित किए गए थे. यह चुनाव इस तरह अपवाद है. इसके अलावा आज तक दूसरे दौर तक वोटों की गिनती की आवश्यकता नहीं पड़ी.
सबसे पहले यह जान लें कि राष्ट्रपति चुनाव में प्रिफ्रेंसियल सिस्टम वोटिंग होता है यानी मतदाताओं को सभी प्रत्याशियों को अपनी पसंद के क्रम के अनुसार वोट करना ज़रूरी होता है. मान लें कि 4 लोग अ, ब, स, द राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार हैं, उन्हें सभी मतदाता अपनी इच्छा से पहली पसंद, दूसरी पसंद, तीसरी और फिर चौथी पसंद के क्रम के अनुसार वोट देंगे. मान लें कि इनमें अ को 30 प्रतिशत वोट मिले, ब को 12 प्रतिशत वोट मिले, स को 40 प्रतिशत वोट मिले और द को 18 प्रतिशत वोट मिले. ऐसे में सबसे कम वोट पाने वाले प्रत्याशी को बाहर कर दिया जाता है. बाहर किए गए उम्मीदवार को मिले वोटों को उसमें वर्णित सेकेंड प्रिफ्रेंस के आधार पर अन्य उम्मीदवारों के वोटों में शामिल कर दिया जाता है. एलिमिनेशन की यह प्रक्रिया तब तक जारी रहती है, जब तक किसी भी उम्मीदवार को 50 प्रतिशत से ज़्यादा वोट न मिल जाएं. 50 प्रतिशत से ज़्यादा वोट पाने वाले प्रत्याशी को निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है. आज तक भारत में राष्ट्रपति निर्वाचन की प्रक्रिया में एक बार ही दूसरे दौर की गिनती की गई है. 1969 में हुए चुनाव में वोटों की गिनती सेकेंड प्रिफ्रेंस के हिसाब से हुई थी. इसके बाद वी वी गिरि निर्वाचित घोषित किए गए थे. यह चुनाव इस तरह अपवाद है. इसके अलावा आज तक दूसरे दौर तक वोटों की गिनती की आवश्यकता नहीं पड़ी.
राष्ट्रपति चुनाव में मतदाताओं के लिए कुछ विशेष प्रावधान हैं:-
यदि
किसी राज्य में विधानसभा किसी भी कारणवश निलंबित हो, फिर भी उसके
निर्वाचित सदस्य राष्ट्रपति चुनाव में भाग ले सकते हैं. 1967 में राजस्थान
विधानसभा के निलंबित होने के बावजूद निर्वाचित सदस्यों ने अपना वोट दिया
था. इसी तरह बिहार विधानसभा भी 1969 में निलंबित थी, मगर निर्वाचित सदस्यों
ने राष्ट्रपति चुनाव में अपना वोट डाला था.
1950 के बाद देश के 12 राष्ट्रपति हुए हैं, जिनमें कुछ ऐसे हैं, जो विशेष प्रकार से राष्ट्रपति रहे हैं.
- देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद अब तक के अकेले ऐसे राष्ट्रपति हैं, जो लगातार दो बार राष्ट्रपति बने थे.
- देश के दो राष्ट्रपति ज़ाकिर हुसैन और फ़खरुद्दीन अली अहमद की मौत उनके कार्यकाल के दौरान हो गई थी, जिसके बाद तत्काल तौर पर उप राष्ट्रपति ने राष्ट्रपति का पद संभाला.
- ज़ाकिर हुसैन की कार्यकाल के दूसरे वर्ष (1969) में मृत्यु के बाद तत्कालीन उप राष्ट्रपति वी वी गिरि कार्यवाहक राष्ट्रपति बने. उसके कुछ माह बाद ही राष्ट्रपति चुनाव में खड़े होने के लिए उन्होंने कार्यवाहक राष्ट्रपति के पद से इस्ती़फा दे दिया था, लेकिन चुनाव में वह हार गए और उनकी जगह मोहम्मद हिदायतुल्ला कार्यकारी राष्ट्रपति बने. फिर हुए चुनाव में वी वी गिरि खड़े हुए और उन्हें जीत मिली. इस तरह वी वी गिरि ऐसे राष्ट्रपति हुए, जो उप राष्ट्रपति रहते हुए कार्यवाहक राष्ट्रपति बने और बाद में चुनाव जीतकर राष्ट्रपति भी बने.
- वी वी गिरि के बाद फ़खरुद्दीन अली अहमद राष्ट्रपति बने, लेकिन कार्यकाल के दौरान ही उनकी मृत्यु हो गई, तब तत्कालीन उप राष्ट्रपति बसप्पा दनप्पा जट्टी कार्यवाहक राष्ट्रपति बने थे.
- वर्तमान में इस पद की शोभा बढ़ा रहीं प्रतिभा देवी सिंह पाटिल देश की पहली महिला राष्ट्रपति हैं.
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