Thursday, 25 July 2013

लोहिया का समाजवाद:वर्तमान में प्रासंगिकता

ram_mohan_lohiyaडॉ राम मनोहर लोहिया ब्रितानिया हुकूमत से आजादी की जंग लड़ने वाले सेनानी के साथ साथ आजाद भारत में कांग्रेस सरकार की गलत नीतिओ के खिलाफ लड़ने वाले महान समाजवादी चिन्तक व योद्धा भी थे | आजाद भारत में व्याप्त बुराइयों की जननी कांग्रेस को मानने वाले डॉ लोहिया ने गैर कांग्रेस वाद की आधार-शिला रखी थी| वर्तमान समय में अपने को डॉ लोहिया के अनुयायी मानने वाले लोगो में विचारधारा ,सिद्धांतो के अनुपालन का संकट व्याप्त है | राजनीतिक स्वार्थो और सत्ता की चाहत में समाजवादी पुरोधा डॉ लोहिया के सिद्धांतो की अनदेखी करना समाजवादी मूल्यों और समाजवादी राज्य की स्थापना के प्रयासों-संकल्पों पर कुठारा घात सरीखा ही होगा | डॉ लोहिया की गरीब-गुरबा के जीवन स्तर में सुधार की सोच के क्रियान्वयन की जगह राहत और बख्शीश की राजनीति से समाजवाद का परचम कैसे लहरा सकता है ? राहत और बख्शीश की राजनीति की जगह अधिकार और कर्त्तव्य के संघर्ष को आगे बढ़ाने का दायित्व अपने को डॉ लोहिया के लोग मानने वालो को ,राजनेताओ को शुरु करना चाहिए |    डॉ राम मनोहर लोहिया आत्मा की आवाज की शक्ति को स्वीकार करते थे | साथ साथ सामाजिक और वस्तु परक सत्य को भी आत्मा की आवाज की शक्ति के जितना ही महत्व-पूर्ण मानते थे | डॉ लोहिया के अनुसार – समस्त निर्गुण सिद्धांत और आदर्श थोथे है और इनकी सार्थकता तभी हो सकती है जब इस निर्गुण आदर्शो को सगुण और संभव आचार संहिता में ढाल कर प्रस्तुत किया जाये | यह डॉ लोहिया ही थे जिन्होंने सगुण सिद्धांतो और गाँधी की प्रासंगिकता के माध्यम से तत्कालीन सरकारी नीतियो की प्रासंगिकता और गाँधी की प्रासंगिकता दोनों की चुनौतियो को देश के निवासियो के बीच विचार-विमर्श का मुद्दा बनाया ,इन मुद्दों पर बहस चलायी |                                                डॉ लोहिया का जीवन चरित्र व संघर्ष कट्टर अहिंसक आंदोलनों और सिद्धांतो का ज्वलंत उदाहरण है | दफा १४४ का विरोध करते हुये पचासों बार जेल जाने वाले डॉ लोहिया ने आजाद भारत में पुरे देश के नागरिको के अधिकारों के हित के लिए , शासन सत्ता के जुल्म के खिलाफ आवाज बुलंद करते हुये एक सत्याग्रही के रूप में मारेंगे नहीं पर मानेंगे नहीं का  एक निर्भीक दर्शन प्रस्तुत किया | भारतीय संविधान में दिये गये नैसर्गिक अधिकारों के विरुद्ध दफा १४४ को मानने वाले डॉ लोहिया के लोग देखते है कब दफा १४४ को ख़त्म करने का संघर्ष जीवित करते है या सत्ता मिलने पर दफा १४४ को ख़त्म करते है |                                                                                                                                      डॉ लोहिया मूलता अस्वीकारवादी थे-गाँधी के सही मायनो में शिष्य थे  ,प्रसिद्ध समाजवादी लेखक लक्ष्मी कान्त वर्मा के अनुसार —- डॉ लोहिया का यह अस्वीकारवाद गाँधी के उस नैतिक बोध से विकसित हुआ है जिसके आधार पर गाँधी ने भारत में ब्रिटिश शासन को अनैतिक करार दिया था और यह कहा था कि मैं ब्रिटिश शासन का इसलिए विरोध करता हूँ कि अंग्रेजो का भारत में शासक के रूप में रहना अनैतिक है | उन्होंने तो अंग्रेजो को यह सलाह दी थी कि वे अपनी इस अनैतिक उपस्थिति को स्वीकार करके भारत छोड़ कर चले जाये | सन १९२०-२१ में ही गाँधी जी ने अंग्रेजो को यह सलाह दी थी और १९४२ में उन्होंने अंग्रेजो को भारत छोड़ो का नारा देकर भारतवासियों से कहा कि अंग्रेजो को भारत से हटाने के लिए करो या मरो के स्तर पर संघर्ष करे | डॉ लोहिया ने इसी नैतिक बोध के आधार पर पूरे समाजवादी आन्दोलन को संगठित किया था और गाँधी के मौलिक सिद्धांतो को भारतीय समाजवाद का एक अंग माना था | अंग्रेजी हटाओ ,सत्ता का विकेंद्री करण करो,ग्राम्य पंचायतो को स्वायत्ता और अधिकार दो ,चौखम्भा राज्य की स्थापना करो,स्वदेशी अपनाओ ये सारे के सारे समाजवादी कार्यक्रम गाँधी जी के सिद्धांतो पर आधारित थे और इसी आधार पर वह भारत की स्वायत्ता की रक्षा करना अपना नैतिक कर्त्तव्य मानते थे | गाँधी की नैतिकता का आधार यदि उनका मन था तो लोहिया का आधार भारत का सामाजिक यथार्थ था | गाँधी की आत्मा की आवाज और डॉ लोहिया के सामाजिक यथार्थ में कोई भेद नहीं है ,क्योंकि लोहिया भी देश का मन बनाने  की बात करते थे | सीधे शब्दों में आत्मा के पारंपरिक अर्थ व्यूह में ना फंस कर वह मन की बात करते थे | बारीकी से देखे तो हम पाएंगे की लोहिया के मन में और गाँधी की आत्मा में कोई विशेष अंतर नहीं है | जो लोहिया का मन है वही गाँधी की आत्मा है |             आज सामाजिक -राजनीतिक जीवन में नैतिक बोध समाप्त प्राय हो गया है | राजनेताओ के पास सिर्फ तिकड़म,व्यक्तिगत स्वार्थ और सत्ता लोलुपता ,सिद्धांत हीनता – विमुखता ही शेष बची है | राजनीति के अपराधी करण के बाद अपराध का राजनीतिकरण हो चुका है | व्यावसायिक उत्पादों की तरह नेताओ का प्रस्तुतीकरण जनता जनार्दन के सामने प्रचार माध्यमो के जरिये बदस्तूर जारी है | भाषण देने ,कुरता पहनने से लेकर कैसे कदम बढाया जाये ,कैसे हाथ हिलाया जाये इस तक का प्रशिक्षण लेकर आज लोग जन नेता बनने की तरफ अग्रसर है | नेताओ की कथनी करनी में गज़ब का विरोधाभास उत्तर प्रदेश विधान सभा के इस आम चुनाव २०१२ में देखने को मिला | डॉ लोहिया दूरदर्शी थे ,उनके चिंतन और साहित्य में आम जन के प्रति समर्पण साफ़ दीखता है | डॉ लोहिया की नीति भारत की आम जनता के हित में है | डॉ राम मनोहर लोहिया देश की तत्कालीन कांग्रेस सरकार और उसकी नीतियो से उपज रहे हालातो से परेशान रहते थे | सरकार के द्वारा पनपायी जा रही यथास्थितिवादी जड़ता को कैसे समाप्त किया जाये ?, इसकी चिंता गाँधी के क्रांतिकारी स्वरुप को उभारने की चिंता ,हर पल बढती हिंसा ,अन्याय और समता विरोधी सरकारी कानूनों और शिकंजो को तोड़ने की चिंता ,यह तीन चिंताए डॉ लोहिया को आंदोलित करती थी | डॉ लोहिया देश की संस्कृति और चेतना का संरक्षण करते हुये सामाजिक न्याय और शोषण रहित समाज की संरचना की प्रक्रिया को तेज़ करने में विश्वास रखते थे | डॉ लोहिया लोकतंत्र की कसौटी पर जब आजाद भारत की कांग्रेसी सरकार के कार्यक्रमों की समीक्षा करते थे तो उन्हें अपार कष्ट होता था ,यही कष्ट गैर कांग्रेस वाद के सिद्धांत के जन्म का कारण बना | डॉ लोहिया का मानना था कि सरकार की यह जो गृह नीति है उससे भारत के आम जनों के नैसर्गिक अधिकारों का गला घोंटा जा रहा है | विदेश नीति में राष्ट्रीय हितो की बलि चढ़ाई जा रही है | आर्थिक नीतियो में उपभोक्ता-वादी दृष्टिकोण को अपनाया जा रहा है और बढ़ावा दिया जा रहा है | सरकार  के द्वारा ग्राम्य विकास की उपेक्षा से, लघु और कुटीर उद्योगों की जगह सरकार के द्वारा अधिकार और सत्ता पर एकाधिपत्य ज़माने के लिए देश की प्रकृति के विरुद्ध भारी उद्योगों को अनावश्यक बढ़ावा देने के कारण डॉ लोहिया परेशान रहते थे | लोहिया की विशेषता थी कि वो जैसा महसूस करते थे वैसा ही व्यक्त भी कर देते थे | लोहिया के मतानुसार कि किसी भी सत्य को इसलिए ना कहना कि सत्य कहने से भय लगता है ,अनुचित है | असत्य पनपता रहे और आदमी उस असत्य को आने वाले सत्य की मृग मरीचिका में स्वीकार कर ले तो वह स्वयं को नष्ट और कलुषित करता है | लोहिया के जीवन संघर्ष के दो महत्व पूर्ण पक्ष सत्य बोलना और अन्याय के खिलाफ अविलम्ब संघर्ष करते रहना रहे है | लोहिया की नज़र में निर्भय होकर अन्याय के खिलाफ लडाई लड़ना ,सहारा लेकर अन्याय के खिलाफ लड़ने की पद्धति से अधिक शक्तिशाली है | लोहिया बिना हथियार के अन्याय के खिलाफ लड़ने की इच्छा शक्ति को अधिक महत्व पूर्ण मानते थे | डॉ लोहिया के ही अनुसार — इस माध्यम से समाज के हर व्यक्ति की साझेदारी अन्याय को समाप्त करने में हो जाती है ,जबकि संगीन के सहारे लड़ने में ,जिसके पास संगीन नहीं है ,वह केवल मूक दर्शक बन कर रह जाता है |       डॉ लोहिया की समाजवादी पार्टी के कार्यक्रमों का मूल आधार चौखम्भा राज था | डॉ लोहिया का साफ़ मानना था कि चौखम्भा राज कि ग्राम पंचायत कि इकाई तभी प्रभावी हो सकती है ,जब उसके काम काज की भाषा और प्रदेश तथा केंद्र की सरकार की काम काज की भाषा भारतीय भाषा हो | जब तक अंग्रेजी रहेगी तब तक भारत की कोई भी भाषा प्रयोग में नहीं आ सकेगी | इसलिए डॉ लोहिया ने अंग्रेजी हटाओ का कार्यक्रम दिया था | यह डॉ लोहिया की क्रांतिकारी सोच थी जिसका उद्देश्य मूल रूप से ग्राम पंचायत की इकाई में आत्म विश्वास पैदा करने को था | उनका मानना था कि अंग्रेजी धीरे धीरे नहीं एक झटके से समाप्त की जा सकती है | भाषा के साथ साथ शिक्षा व्यवस्था में परिवर्तन चाहने वाले डॉ लोहिया का सपना था कि प्रधान मंत्री का बेटा और प्रधान मंत्री के चपरासी का बेटा जब एक ही स्कूल में पढ़ेगा तो समता प्रधान समाज विकसित होगा | अंग्रेजी की वरीयता समाप्त हो जाने से अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों की  प्रभुता भी समाप्त हो जाएगी तथा भारतीय स्थानीय भाषा व हिंदी का महत्व बढेगा | डॉ लोहिया का कथन था कि — अंग्रेजी इसी तरह जाएगी | डेढ़ मिनट में नहीं बल्कि एक सेकंड में | झटके में यह सब चीजे हुआ करती है | धीरे धीरे नहीं हुआ करती हैं | धीरे धीरे कहने वाला यह शासक और शोषक सामंती वर्ग है जो कि ८० करोड़ भारतीय जनता पर अपना राज चलाना चाहता है और इसीलिए इस मसले पर एक मजबूत विचार ना करके अंग्रेजी बनाये रखना चाहता है | अब हमें तयें करना चाहिए कि अंग्रेजी को अपने इलाके से हटायेंगे | जाती तोड़ो-समाज जोड़ो आन्दोलन ,विशेष अवसर का सिद्धांत की  व्याख्या करते हुये डॉ लोहिया ने कहा कि — जब तक तेली,अहीर, चमार,पासी आदि में से नेता नहीं निकलते ,छोटी जाति में कहे जाने वाले लोगो को जब तक उठने और उभरने का मौका नहीं दिया जता ,देश आगे नहीं बढ़ सकता | कांग्रेसी लोग कहते है पहले छोटी जाति के लोगो को योग्य बनाओ फिर कुर्सी दो | मेरा मानना है कि अवसर की गैर बराबरी का सिद्धांत अपनाना होगा | देश की अधिसंख्य जनता जिसमे तमोली ,चमार,दुसाध ,पासी,आदिवासी आदि शामिल है ,पिछले दो हज़ार वर्षो से दिमाग के काम से अलग रखे गये हैं | जब तक तीन चार हज़ार वर्षो के कुसंस्कार दूर नहीं होता ,सहारा देकर ऊँची जगहों पर छोटी जातियो को बैठना होगा | चाहे नालायक हो तब भी | इस देश ने ऊँची जातियो की योग्यता को बहुत देख लिया है | देश की गजटी नौकरियो ,राजनीतिक पार्टियो की नेतागिरी ,पलटन ,व्यापार आदि में जनता के दिमाग पर जो हजारो वर्ष का ताला बंद किया गया है,खुलेगा | दाम बांधो और आमदनी खर्ज पर सीमा लगाओ का नारा लोहिया ने शायद आजाद भारत के ग्रामीणों की दशा को देख कर लगाया था और संसद में पैरवी भी की थी | डॉ लोहिया के विचार और कार्यक्रम भारत के आम जन से जुड़े थे और आज भी जुड़े है | आज डॉ लोहिया के विचारो के दो टूक और निर्भीक सत्य की व्याख्या करने की आवश्यकता नहीं है | अगर अपने को डॉ लोहिया के लोग मानने वालो ने इस पर ईमानदारी से काम किया होता तो आज पूरा देश समाजवादी आन्दोलन से जुड़ा होता | समाजवादियो को लोहिया के विचारो की चर्चा परिचर्चा के शिविर लगाने चाहिए , समाजवादी आन्दोलन में जातीयता की जकड़न की जगह समाजवादी विचारो की प्रखरता और कर्म का मिश्रण महत्वपूर्ण है | देश में व्याप्त समस्याओ-  बुराइयों की जननी कांग्रेस के मुकाबिल अंततोगत्वा डॉ लोहिया के लोगो को खड़ा ही होना होगा और समाजवादियो की एका के सपने एक मधुर परन्तु दुष्कर स्वप्न की तरह आने बदस्तूर जारी है |

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