संयुक्त
राष्ट्र (यू.एन.ओ.) एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है, जिसके उद्देश्य में उल्लेख
है कि यह अंतरराष्ट्रीय कानून को सुविधाजनक बनाने के सहयोग,
अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक विकास, सामाजिक प्रगति, मानव अधिकार, और
विश्व शांति के लिए कार्यरत है. संयुक्त राष्ट्र की स्थापना 24अक्टूबर 1945को संयुक्त राष्ट्र अधिकारपत्र पर 50 देशों के हस्ताक्षर होने के साथ हुई।
द्वितीय विश्वयुद्ध के
विजेता देशों ने मिलकर संयुक्त राष्ट्र को अन्तर्राष्ट्रीय संघर्ष में
हस्तक्षेप करने के उद्देश्य से स्थापित किया था। वे चाहते थे कि भविष्य मे
फ़िर कभी द्वितीय विश्वयुद्ध की तरह के युद्ध न उभर आए। संयुक्त राष्ट्र की
संरचना में सुरक्षा परिषद वाले सबसे शक्तिशाली देश (संयुक्त राज्य अमेरिका, फ़्रांस, रूस, चीन, औरसंयुक्त राजशाही) द्वितीय विश्वयुद्ध में बहुत अहम देश थे।
वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र मे 193 देश है, विश्व के लगभग सारे अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त देश। इस संस्था की संरचन में आम सभा, सुरक्षा परिषद, आर्थिक व सामाजिक परिषद, सचिवालय, और अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय सम्मलित हैं !
संयुक्त
राष्ट्र के बारे में विचार पहली बार द्वितीय विश्बयुद्ध के समाप्त होने के
पहले उभरे थे । द्वितीय भिश्व युद्ध मे विजयी होने वाले देशों ने मिलकर
कोशिश की कि वे इस संस्था की संरचन, सदस्यता, आदि के बारे में कुछ निर्णय
कर पाए ।
24 अप्रैल 1945 को, द्वितीय विश्वयुद्ध के समाप्त होने के बाद, अमेरिका के सैन फ्रैंसिस्को में
अंतराष्ट्रीय संस्थाओं की संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन हुई और यहां सारे 40
उपस्थित देशों ने संयुक्त राष्ट्रिय संविधा पर हस्ताक्षर किया । पोलैंड इस
सम्मेलन में उपस्थित तो नहीं थी, पर उसके हस्ताक्षर के लिए खास जगह रखी गई
थी और बाद में पोलैंड ने भी हस्ताक्षर कर दिया । सुरक्षा परिषद के पांच
स्थायी देशों के हस्ताक्षर के बाद संयुक्त राष्ट्र की अस्तित्व हुई ।
सद्स्य....
2012 तक संयुक्त राष्ट्र में 193 सदस्य देश है । विश्व के लगभग सारी मान्यता प्राप्त देश सदस्य है । कुछ विषेश उपवाद तइवान (जिसकी स्थिति चीन को 1971 में दे दी गई थी), वैटिकन, फ़िलिस्तीन (जिसको दर्शक की स्थिति का सदस्य माना जा सक्ता है), तथा और कुछ देश । सदस्य देश है मॉंटेनीग्रो, जिसको 28 जून, 2006 को सदस्य बनाया गया तथा सबसे नए सद्स्य देश सूडान ने 2011 में सदस्यता गृहण की !
मुख्यालय .....
संयुक्त राष्ट्र का मुख्यालय अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर
में पचासी लाख डॉलर के लिए खरीदी भूसंपत्ति पर स्थापित है । इस इमारत की
स्थापना का प्रबंध एक अंतर्राष्ट्रीय शिल्पकारों के समूह द्वारा हुआ । इस
मुख्यालय के अलावा और अहम संस्थाएं जनीवा, कोपनहेगन आदि में भी है ।
यह संस्थाएं संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र अधिकार क्षेत्र तो नहीं हैं, परंतु उनको काफ़ी स्वतंत्रताएं दी जाती है ।
यह संस्थाएं संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र अधिकार क्षेत्र तो नहीं हैं, परंतु उनको काफ़ी स्वतंत्रताएं दी जाती है ।
भाषाएँ.....
संयुक्त राष्ट्र ने 6 भाषाओं को "राज भाषा" स्वीकृत किया है (अरबी, चीनी, अंग्रेज़ी, फ़्रांसीसी, रूसी और स्पेनी), परंतु इन में से केवल दो भाषाओं को संचालन भाषा माना जाता है (अंग्रेज़ी और फ़्रांसीसी) ।
स्थापना
के समय, केवल चार राज भाषाएं स्वीकृत की गई थी (चीनी, अंग्रेज़ी,
फ़्रांसीसी, रूसी) और 1973 में अरबी और स्पेनी को भी संमिलित किया गया । इन
भाषाओं के बारे में काफ़ी विवाद उठता है । कुछ लोगों का मानना है कि राज
भाषाओं को 6 से एक (अंग्रेज़ी) तक घटाना चाहिए, परंतु इनके विरोध है बे जो
मानते है कि राज भाषाओं को बढ़ाना चाहिए । इन लोगों में से काफ़ी का मानना
है कि हिंदी को संमिलित करना आवश्यक है ।
संयुक्त राष्ट्र अमेरिकी अंग्रेज़ी की जगह ब्रिटिश अंग्रेज़ी का प्रयोग करता है । 1971 तक, जब तक संयुक्त राष्ट्र तईवान के
सरकार को चीन का अधिकारी सरकार माना जाता था, चीनी भाषा के परम्परागत
अक्षर का प्रयोग चलता था । जब तईवान की जगह आज के चीनी सरकार को स्वीकृत
किया गया, संयुक्त राष्ट्र ने सरलीकृत अक्षर के प्रयोग का प्रारंभ किया !
उदेश्य...
संयुक्त
राष्ट्र के व्यक्त उद्देश्य हैं युद्ध रोकना, मानव अधिकारों की रक्षा
करना, अंतर्राष्ट्रीय कानून को निभाने की प्रक्रिया जुटाना, सामाजिक और
आर्थिक विकास उभारना, जीवन स्तर सुधारना और बिमारियों से लड़ना । सदस्य
राष्ट्र को अंतर्राष्ट्रीय चिंताएं और राष्ट्रीय मामलों को सम्हालने का
मौका मिलता है । इन उद्देश्य को निभाने के लिए 1948 में मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा प्रमाणित की गई ।
मानव अधिकार......
द्वितीय विश्वयुद्ध के
जातिसंहार के बाद, संयुक्त राष्ट्र ने मानव अधिकारों को बहुत आवश्यक समझा
था । ऐसी घटनाओं को भविष्य में रोकना अहम समझकर, 1948 में सामान्य सभा ने मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा को
स्वीकृत किया । यह अबंधनकारी घोषणा पूरे विश्व के लिए एक समान दर्जा
स्थापित करती है, जो कि संयुक्त राष्ट्र समर्थन करने की कोशिश करेगी ।
15 मार्च 2006 को, समान्य सभा ने संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकारों के आयोग को त्यागकर संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार परिषद की स्थापना की ।
आज मानव अधिकारों के संबंध में सात संघ निकाय स्थापित है । यह सात निकाय हैं:
- मानव अधिकार संसद
- आर्थिक सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों का संसद
- जातीय भेदबाव निष्कासन संसद
- नारी विरुद्ध भेदभाव निष्कासन संसद
- यातना विरुद्ध संसद
- बच्चों के अधिकारों का संसद
- प्रवासी कर्मचारी संसद
शांतिरक्षा.....
संयुक्त
राष्ट्र के शांतिरक्षक वहां भेजे जाते हैं जहां हिंसा कुछ देर पहले से बंद
है ताकि वह शांति संघ की शर्तों को लगू रखें और हिंसा को रोककर रखें । यह
दल सदस्य राष्ट्र द्वारा प्रदान होते हैं और शांतिरक्षा कर्यों में भाग
लेना वैकल्पिक होता है । विश्व में केवल दो राष्ट्र हैं जिनने हर
शांतिरक्षा कार्य में भाग लिया है: कनाडा और पुर्तगाल । संयुक्त राष्ट्र स्वतंत्र सेना नहीं रखती है । शांतिरक्षा का हर कार्य सुरक्षा परिषद द्वारा अनुमोदित होता है ।
संयुक्त राष्ट्र के संस्थापकों को ऊंची उम्मीद थी की वह युद्ध को हमेशा के लिए रोक पाएंगे, पर शीत युद्ध (1945 - 1991) के समय विश्व का विरोधी भागों में विभाजित होने के कारण, शांतिरक्षा संघ को बनाए रखना बहुत कठिन था ।
वर्तमान में यू.एन.ओ.....
कहने
को तो अमेरिका लोकतंत्र का सबसे बड़ा पैरोकार है लेकिन वह भी वैश्विक
संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएनओ) के महत्पूर्ण घटक सुरक्षा परिषद में
लोकतंत्र की पूर्ण स्थापना के लिए कुछ भी नहीं कर रहा है। यूएनओ को वैश्विक
सत्ता कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। हालांकि भारत सहित दुनिया के
मात्र 193 देशों को ही यूएनओ की सदस्यता प्राप्त है, फिर भी इसकी सत्ता को
वैश्विक सत्ता कहना ज्यादा समीचीन होगा।
वर्तमान
में सुरक्षा परिषद के सदस्यों की संख्या 15 है। इनमें से पांच- अमेरिका,
रूस, फ्रांस, चीन और ब्रिटेन; स्थाई सदस्य हैं, जबकि 10 देशों की सदस्यता
अस्थाई है। इन अस्थाई सदस्यों में भारत भी शामिल है। अस्थाई सदस्यों का
कार्यकाल दो वर्ष का होता है। स्थाई सदस्यों को वीटो का अधिकार प्राप्त है।
यह वीटो अधिकार ही सुरक्षा परिषद में लोकतंत्र की स्थापना की राह में सबसे
बड़ा रोड़ा है। क्या आप कुछ सदस्यों को कुछ विशेष अधिकार देकर लोकतांत्रिक
सत्ता स्थापित कर सकते हैं, यह कदापि संभव नहीं है।
आखिर
सुरक्षा परिषद में लोकतंत्र की पूर्ण-रूपेण स्थापना के लिए अमेरिका कोई
पहल क्यों नहीं करता? क्या वह सुरक्षा परिषद के पांच स्थाई सदस्य देशों को
मिले वीटो के अधिकार को बनाए रखना चाहता है और शेष अस्थाई सदस्य देशों को
अस्थाई के नाम पर इस अधिकार से दूर रखना चाहता है? क्या यही अमेरिका की
लोकतंत्रिक सोच है। हालांकि यह पहल चीन से करना बेमानी है क्योंकि उसकी सोच
गैर-लोकतांत्रिक है। अमेरिका को यह महत्वपूर्ण पहल इसलिए भी करना चाहिए
क्योंकि वह सोवियत संघ के विघटन के बाद एक-ध्रुवीय विश्व का इकलौता नेता
है।
भारत
भी सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता के लिए अभियान चलाए हुए है। इससे उसको
क्या हासिल होगा। कुछ विशेष सहूलियत मिल सकती है। महासभा के सदस्य देशों या
विश्व के अन्य देशों के लिए वैश्विक नीति-निर्माण की दिशा में मत देने का
अधिकार मिल सकता है, लेकिन इससे क्या वह संयुक्त राष्ट्र महासभा के 193
सदस्यों में से पांच देशों- अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन और ब्रिटेन, को
छोड़कर शेष 188 देशों का स्वाभाविक नेता बना रह सकता है। सुरक्षा परिषद की
स्थाई सदस्यता के बजाए भारत को सभी देशों के लिए समान अधिकार की सदस्यता के
लिए अभियान चलाना चाहिए। क्योंकि यही प्रयास संयुक्त राष्ट्र संघ सहित
विश्व के सभी देशों में लोकतंत्र की जड़ें गहरी करने की दिशा में अहम सिद्ध
होगी।
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