चीन व भारत विश्व के दो बड़े विकासशील देश हैं। दोनों ने विश्व की शांति व विकास के
लिए अनेक काम किये हैं। चीन और उसके सब से बड़े पड़ोसी देश भारत के बीच
लंबी सीमा रेखा है। लम्बे अरसे से चीन सरकार भारत के साथ अपने संबंधों का
विकास करने को बड़ा महत्व देती रही है। इस वर्ष की पहली अप्रैल को चीन व
भारत के राजनयिक संबंधों की स्थापना की 55वीं वर्षगांठ थी ।
वर्ष
1949 में नये चीन की स्थापना के बाद के अगले वर्ष, भारत ने चीन के साथ
राजनयिक संबंध स्थापित किये। इस तरह भारत चीन लोक गणराज्य को मान्यता देने
वाला प्रथम गैरसमाजवादी देश बना। चीन व भारत के बीच राजनयिक संबंधों की
औपचारिक स्थापना के बाद के पिछले 55 वर्षों में चीन-भारत संबंध कई सोपानों
से गुजरे। उनका विकास आम तौर पर सक्रिय व स्थिर रहा, लेकिन, बीच में मीठे व
कड़वी स्मृतियां भी रहीं। इन 55 वर्षों में दोनों देशों के संबंधों में
अनेक मोड़ आये। आज के इस कार्यक्रम में हम चीन व भारत के राजनीतिक संबंधों
का सिंहावलोकन करेंगे।
प्रोफेसर मा जा ली चीन के आधुनिक अंतरराष्ट्रीय संबंध अनुसंधान संस्थान के दक्षिणी एशिया अनुसंधान
केंद्र के प्रधान हैं। वे तीस वर्षों से चीन व भारत के राजनीतिक संबंधों
के अनुसंधान में लगे हैं। श्री मा जा ली ने पिछले भारत-चीन संबंधों के 55
वर्षों को पांच भागों में विभाजित किया है। उन के अनुसार, 1950 के दशक में
चीन व भारत के संबंध इतिहास के सब से अच्छे काल में थे। दोनों देशों के
शीर्ष नेताओं ने तब एक-दूसरे के यहां की अनेक यात्राएं कीं और उनकी जनता के
बीच भी खासी आवाजाही रही। दोनों देशों के बीच तब घनिष्ठ राजनीतिक संबंध
थे। लेकिन, 1960 के दशक में चीन व भारत के संबंध अपने सब से शीत काल में
प्रवेश कर गये। इस के बावजूद दोनों के मैत्रीपूर्ण संबंध कई हजार वर्ष
पुराने हैं। इसलिए, यह शीतकाल एक ऐतिहासिक लम्बी नदी में एक छोटी लहर की
तरह ही था। 70 के दशक के मध्य तक वे शीत काल से निकल कर फिर एक बार घनिष्ठ
हुए। चीन-भारत संबंधों में शैथिल्य आया , तो दोनों देशों की सरकारों के उभय
प्रयासों से दोनों के बीच फिर एक बार राजदूत स्तर के राजनयिक संबंधों की
बहाली हुई। 1980 के दशक से 1990 के दशक के मध्य तक चीन व भारत के संबंधों
में गर्माहट आ चुकी थी। हालांकि वर्ष 1998 में दोनों देशों के संबंधों में
भारत द्वारा पांच मिसाइलें छोड़ने से फिर एक बार ठंडापन आया। पर यह तुरंत
दोनों सरकारों की कोशिश से वर्ष 1999 में भारतीय विदेशमंत्री की चीन यात्रा
के बाद समाप्त हो गया। अब चीन-भारत संबंध कदम ब कदम घनिष्ठ हो रहे हैं।
इधर
के वर्षों में चीन-भारत संबंधों में निरंतर सुधार हो रहा है। चीन व भारत
के वरिष्ठ अधिकारियों के बीच आवाजाही बढ़ी है। भारत स्थित भूतपूर्व चीनी
राजदूत च्यो कांग ने कहा, अब चीन-भारत संबंध एक नये काल में प्रवेश कर चुके
हैं। इधर के वर्षों में, चीन व भारत के नेताओं के बीच आवाजाही बढ़ी। वर्ष
2001 में पूर्व चीनी नेता ली फंग ने भारत की यात्रा की। वर्ष 2002 में
पूर्व चीनी प्रधानमंत्री जू रोंग जी ने भारत की यात्रा की। इस के बाद, वर्ष
2003 मेंभारतीय प्रधानमंत्री वाजपेई ने चीन की यात्रा की। उन्होंने चीनी प्रधानमंत्री वन चा पाओ के
साथ चीन-भारत संबंधों के सिद्धांत और चतुर्मुखी सहयोग के घोषणापत्र पर
हस्ताक्षर किये। इस घोषणापत्र ने जाहिर किया कि चीन व भारत के द्विपक्षीय
संबंध अपेक्षाकृत परिपक्व काल में प्रवेश कर चुके हैं। इस घोषणापत्र ने
अनेक महत्वपूर्ण द्विपक्षीय समस्याओं व क्षेत्रीय समस्याओं पर दोनों के
समान रुख भी स्पष्ट किये। इसे भावी द्विपक्षीय संबंधों के विकास का
निर्देशन करने वाला मील के पत्थर की हैसियत वाला दस्तावेज भी माना गया। चीन
व भारत के संबंध पुरानी नींव पर और उन्नत हो रहे हैं।
विदेश
नीति पर चीन व भारत बहुध्रुवीय दुनिया की स्थापना करने का पक्ष लेते हैं,
प्रभुत्ववादी व बल की राजनीति का विरोध करते हैं और किसी एक शक्तिशाली देश
के विश्व की पुलिस बनने का विरोध करते हैं। अंतरराष्ट्रीय संबंधों में
मौजूद वर्तमान विवादों का किस तरह निपटारा हो और देशों के बीच किस तरह का
व्यवहार किया जाये ये दो समस्याएं विभिन्न देशों के सामने खड़ी हैं। चीन व
भारत मानते हैं कि उनके द्वारा प्रवर्तित किये गये शांतिपूर्ण सहअस्तित्व
के पांच सिद्धांत संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के उन लक्ष्यों तथा सिद्धांतों
को प्रतिबिंबित करते हैं, जिनका दुनिया के विभिन्न देशों द्वारा पालन किया
जाना चाहिए।
शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पांच सिद्धांत यानी पंचशील चीन, भारत व म्येनमार द्वारा
वर्ष 1954 के जून माह में प्रवर्तित किये गये। पंचशील चीन व भारत द्वारा
दुनिया की शांति व सुरक्षा में किया गया एक महत्वपूर्ण योगदान है,और आज तक
दोनों देशों की जनता की जबान पर है। देशों के संबंधों को लेकर स्थापित इन
सिद्धांतों की मुख्य विषयवस्तु है- एक-दूसरे की प्रभुसत्ता व प्रादेशिक
अखंडता का सम्मान किया जाये, एक- दूसरे पर आक्रमण न किया जाये , एक-दूसरे
के अंदरूनी मामलों में दखल न दी जाये और समानता व आपसी लाभ के आधार पर
शांतिपूर्ण सहअस्तित्व बरकारार रखा जाये। ये सिद्धांत विश्व के अनेक देशों
द्वारा स्वीकार कर लिये गये हैं और द्विपक्षीय संबंधों पर हुए
अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों व दस्तावेजों में दर्ज किये गये हैं। पंचशील के
इतिहास की चर्चा में भारत स्थित पूर्व चीनी राजदूत श्री छन रे शन ने बताया,
द्वितीय विश्वॉयुद्ध से पहले, एशिया व अफ्रीका के बहुत कम देशों ने
स्वतंत्रता हासिल की थी। लेकिन, द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद, उपनिवेशवादी
व्यवस्था भंग होनी शुरू हुई। भारत व म्येनमार ने स्वतंत्रता प्राप्त की और
बाद में चीन को भी मुक्ति मिली। एशिया में सब से पहले स्वतंत्रता प्राप्त
करने वाले देश होने के नाते, उन्हें देशों की प्रभुसत्ता व प्रादेशिक
अखंडला का कायम रहना बड़ा आवश्यक लगा और उन्हें विभिन्न देशों के संबंधों
का निर्देशन करने के सिद्धांत की जरुरत पड़ी। इसलिए, इन तीन देशों के
नेताओं ने मिलकर पंचशील का आह्वान किया।
पंचशील
ने अंतरराष्ट्रीय संबंधों की सैद्धांतिक व यथार्थ कार्यवाइयों में
रचनात्मक योगदान किया।, पूर्व भारतीय राष्ट्रपति नारायणन ने पंचशील की
महत्वता की चर्चा इस तरह की। पंचशील का आज भी भारी महत्व है। वह काफी समय
से देशों के संबंधों के निपटारे का निर्देशक मापदंड रहा है। एक शांतिपूर्ण
दुनिया की स्थापना करने के लिए पंचशील का कार्यावयन करना अत्यन्त
महत्वपूर्ण है। इतिहास और अंतरराष्ट्रीय यथार्थ से जाहिर है कि पंचशील की
जीवनीशक्ति बड़ी मजबूत है। उसे व्यापक जनता द्वारा स्वीकार किया जा चुका
है। भिन्न-भिन्न सामाजिक प्रणाली अपनाने वाले देश पंचशील की विचारधारा को
स्वीकार करते हैं। लोगों ने मान लिया है कि पंचशील शांति व सहयोग के लिए
लाभदायक है और अंतरराष्ट्रीय कानूनों व मापदंडों से पूर्ण रूप से मेल खाता
हैं। आज की दुनिया में परिवर्तन हो रहे हैं। पंचशील का प्रचार-प्रसार आज की
कुछ समस्याओं के हल के लिए बहुत लाभदायक है। इसलिए, पंचशील आज भी एक
शांतिपूर्ण विश्व व्यवस्था का आधार है। उस का आज भी भारी अर्थ व महत्व है
और भविष्य में भी रहेगा।
शांति
व विकास की खोज करना वर्तमान दुनिया की जनता की समान अभिलाषा है। पंचशील
की शांति व विकास की विचारधारा ने अंतरराष्ट्रीय संबंधों के स्वस्थ विकास
को आगे बढ़ाया है और भविष्य में भी वह एक शांतिपूर्ण, स्थिर, न्यायपूर्ण व
उचित नयी अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की स्थापना में अहम भूमिका अदा करेगी।
दोनों
देशों के संबंधों को आगे विकसित करने के लिए वर्ष 2000 में पूर्व भारतीय
राष्ट्रपति नारायणन ने चीन की राजकीय यात्रा के दौरान, पूर्व चीनी
राष्ट्राध्यक्ष च्यांग ज मिन के साथ वार्ता में भारत और चीन के जाने-माने
व्यक्तियों के मंच के आयोजन का सुझाव प्रस्तुत किया। इस प्रस्ताव पर श्री
च्यांग ज मिन ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी। दोनों सरकारों ने इस मंच की
स्थापना की पुष्टि की। मंच के प्रमुख सदस्य, दोनों देशों के राजनीतिक,
आर्थिक, सामाजिक, वैज्ञानिक व तकनीक तथा सांस्कृतिक आदि क्षेत्रों के जाने
माने व्यक्ति हैं। मंच के एक सदस्य श्री च्यो कांग ने मंच का प्रमुख ध्येय
इस तरह समझाया, इस मंच का प्रमुख ध्येय दोनों देशों के विभिन्न क्षेत्रों
के जाने-माने व्यक्तियों द्वारा द्विपक्षीय संबंधों के विकास के लिए सुझाव
प्रस्तुत करना और सरकार को परामर्श देना है। यह दोनों देशों के बीच
गैरसरकारी आवाजाही की एक गतिविधियों में से एक भी है। वर्ष 2001 के सितम्बर
माह से वर्ष 2004 के अंत तक इसका चार बार आयोजन हो चुका है। इसके अनेक
सुझावों को दोनों देशों की सरकारों ने स्वीकृत किया है। यह मंच सरकारी
परामर्श संस्था के रूप में आगे भी अपना योगदान करता रहेगा।
हालांकि
इधर चीन व भारत के संबंधों में भारी सुधार हुआ है, तो भी दोनों के संबंधों
में कुछ अनसुलझी समस्याएं रही हैं। चीन व भारत के बीच सब से बड़ी समस्याएं
सीमा विवाद और तिब्बत की हैं। चीन सरकार हमेशा से तिब्बत की समस्या को
बड़ा महत्व देती आई है। वर्ष 2003 में भारतीय प्रधानमंत्री वाजपेयी ने चीन
की यात्रा की और चीनी प्रधानमंत्री वन चा पाओ के साथ एक संयुक्त घोषणापत्र
जारी किया। घोषणापत्र में भारत ने औपचारिक रूप से कहा कि भारत तिब्बत को
चीन का एक भाग मानता है। इस तरह भारत सरकार ने प्रथम बार खुले रूप से किसी
औपचारिक दस्तावेज के माध्यम से तिब्बत की समस्या पर अपने रुख पर प्रकाश
डाला, जिसे चीन सरकार की प्रशंसा प्राप्त हुई।
इस
के अलावा, चीन व भारत के बीच सीमा समस्या भी लम्बे अरसे से अनसुलझी रही
है। इस समस्या के समाधान के लिए चीन व भारत ने वर्ष 1981 के दिसम्बर माह से
अनेक चरणों में वार्ताएं कीं और उनमें कुछ प्रगति भी प्राप्त की। वर्ष
2003 में पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने चीन की सफल
यात्रा की। चीन व भारत ने चीन-भारत संबंधों के सिद्धांत और चतुर्मुखी
सहयोग के ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये। चीन व उसके पड़ोसी देशों के राजनयिक
संबंधों के इतिहास में ऐसे ज्ञापन कम ही जारी हुए हैं। दोनों देशों के
प्रधानमंत्रियों द्वारा सम्पन्न इस ज्ञापन में दोनों देशों ने और साहसिक
नीतियां अपनायीं, जिन में सीमा समस्या पर वार्ता के लिए विशेष प्रतिनिधियों
को नियुक्त करना और सीमा समस्या का राजनीतिक समाधान खोजना आदि शामिल रहा।
चीन और भारत के इस घोषणापत्र में यह भी स्पष्ट किया गया है कि तिब्बत
स्वायत्त प्रदेश चीन का एक अभिन्न और अखंड भाग है। सीमा समस्या के हल के
लिए चीन व भारत के विशेष प्रतिनिधियों के स्तर पर सलाह-मश्विरा जारी है।
वर्ष 2004 में चीन और भारत ने सीमा समस्या पर यह विशेष प्रतिनिधि वार्ता
व्यवस्था स्थापित की। भारत स्थित पूर्व चीनी राजदूत च्यो कांग ने कहा,
इतिहास से छूटी समस्या की ओर हमें भविष्योन्मुख रुख से प्रस्थान करना
चाहिए। चीन सरकार ने सीमा समस्या के हल की सक्रिय रुख अपनाई है। चीन आशा
करता है कि इसके लिए आपसी सुलह औऱ विश्वास की भावना के अनुसार, मैत्रीपूर्ण
वार्ता के जरिए दोनों को स्वीकृत उचित व न्यायपूर्ण तरीकों की खोज की जानी
चाहिए। विश्वास है कि जब दोनों पक्ष आपसी विश्वास , सुलह व रियायत देने की
अभिलाषा से प्रस्थान करेंगे तो चीन-भारत सीमा समस्या के हल के तरीकों की खोज कर ही ली जाएगी।
इस
समय चीन व भारत अपने-अपने शांतिपूर्ण विकास में लगे हैं। 21वीं शताब्दी के
चीन व भारत प्रतिद्वंदी हैं और मित्र भी। अंतरराष्ट्रीय मामलों में दोनों
में व्यापक सहमति है। आंकड़े बताते हैं कि संयुक्त राष्ट्र संघ में विभिन्न
सवालों पर हुए मतदान में अधिकांश समय, भारत और चीन का पक्ष समान रहा। अब
दोनों देशों के सामने आर्थिक विकास और जनता के जीवन स्तर को सुधारने का
समान लक्ष्य है। इसलिए, दोनों को आपसी सहयोग की आवश्यकता है। अनेक
क्षेत्रों में दोनों देश एक-दूसरे से सीख सकते हैं।
चीन-भारत
संबंधों के भविष्य के प्रति श्री मा जा ली बड़े आश्वस्त हैं। उन्होंने
कहा, समय गुजरने के साथ दोनों देशों के बीच मौजूद विभिन्न अनसुलझी समस्याओं
व संदेहों को मिटाया जा सकेगा और चीन व भारत के राजनीतिक संबंध और घनिष्ठ
होंगे। इस वर्ष मार्च में चीनी प्रधानमंत्री वन चा पाओ भारत की यात्रा पर
जा रहे हैं। उनके भारत प्रवास के दौरान चीन व भारत दोनों देशों के नेता फिर
एक बार एक साथ बैठकर समान रुचि वाली द्विपक्षीय व क्षेत्रीय समस्याओं पर
विचार-विमर्श करेंगे। श्री मा जा ली ने कहा, भविष्य में चीन-भारत संबंध और
स्वस्थ होंगे और और अच्छे तरीके से आगे विकसित होंगे । आज हम देख सकते हैं
कि चीन व भारत के संबंध लगतार विकसित हो रहे हैं। यह दोनों देशों की
सरकारों की समान अभिलाषा भी है। दोनों पक्ष आपसी संबंधों को और गहन रूप से
विकसित करने को तैयार हैं। मुझे विश्वास है कि चीन-भारत संबंध अवश्य ही और
स्वस्थ व मैत्रीपूर्ण होंगे और एक रचनात्मक साझेदारी का रूप लेंगे।
भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति नारायण ने
कहा, मेरा विचार है कि चीन और भारत को द्विपक्षीय मैत्रीपूर्ण संबंधों को
और गहरा करना चाहिए। हमारे बीच सहयोग दुनिया के विकास को आगे बढ़ाने में
अहम भूमिका अदा कर सकेंगे।
भारत-चीन के सम्बन्धों के कुछ महत्वपूर्ण मुद्दे ...........
भारत
और चीन ने मीडिया, संस्कृति और पर्यावरण के अनुकूल प्रौद्योगिकी सहित
विभिन्न क्षेत्रों में छह समझौतों पर हस्ताक्षर किए। भारत और चीन ने वर्ष
2015 तक आपसी व्यापार बढ़ाकर 100 अरब डॉलर करने का लक्ष्य निर्धारित किया
है। भारत का व्यापार घाटा कम करने के लिए दोनों देश भारत द्वारा चीन को किए
जाने वाले निर्यात को बढ़ावा देने के लिए सहमत हुए हैं।कई मुद्दों को सुलझाने पर सहमति.......
पिछले एक साल में द्विपक्षीय रिश्तों में आई कुछ दिक्कतों को समाप्त करने की कोशिश में भारत और चीन कई मुद्दों पर व्यापक आमसहमति पर पहुंचे और सीमा मसले समेत अनेक मतभेदों को शांतिपूर्ण बातचीत के जरिये जल्द से जल्द सुलझाने की प्रतिबद्धता जताई। बातचीत के दौरान दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों के सीधे संपर्क के लिए टेलीफोन हॉटलाइन शुरू करने के फैसले का स्वागत किया गया। दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने आपसी महत्व के मुद्दों पर नियमित विचार-विमर्श के लिए सहमति जाहिर की।
सीमांत इलाकों में शांति बनाये रखेंगे......
सीमा मसले के समाधान को दोनों देशों के नेताओं ने दस स्तरीय रणनीति में शामिल किया है। दोनों नेताओं ने फैसला किया कि जब तक इसका समाधान नहीं होता दोनों पक्ष पूर्ववर्ती सहमतियों की तर्ज पर सीमांत इलाकों में शांति बनाये रखने के लिहाज से मिलकर काम करेंगे। दोनों पक्षों ने चीन और भारत के बीच सीमा के आरपार बहने वाली नदियों के क्षेत्र में भी अच्छे सहयोग की बात कही। भारतीय पक्ष ने बाढ़ के समय में जलीय डाटा तथा आपातकालीन प्रबंधन पर चीन की तरफ से दी गयी सहायता की तारीफ की।
मिलकर आतंकवाद का मुकाबला करेंगे.....
आतंकवाद के सभी प्रकारों के स्पष्ट विरोध की जरूरत को रेखांकित करते हुए दोनों देशों ने इस बात पर जोर दिया कि कहीं भी आतंकवाद की कोई भी करतूत न्यायोचित नहीं हो सकती। वक्तव्य के अनुसार उन्होंने संयुक्त प्रयासों के माध्यम से आतंकवाद का मुकाबला करने की प्रतिबद्धता जताई जिसमें आतंकवाद को दी जाने वाली आर्थिक सहायता को रोकना भी शामिल है।
भारत के दर्जे को बहुत महत्व........
बड़े क्षेत्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर समान हितों और समान चिंताओं को रेखांकित करते हुए दोनों पक्षों ने समन्वय और सहयोग बढ़ाने का फैसला किया। बयान के अनुसार अंतरराष्ट्रीय मामलों में एक बड़े विकासशील देश के तौर पर भारत के दर्जे को चीन बहुत महत्व देता है और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में महती भूमिका निभाने की भारत की आकांक्षाओं को समझता और इनका समर्थन करता है।
नत्थी वीजा का मामला सुलझाने पर गंभीर.........
चीनी प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ ने खुद कश्मीरियों के लिए नत्थी वीजा के मामले को उठाया और सुझाया कि दोनों देशों के अधिकारियों को इस मुद्दे को सुलझाने के लिए गहराई से विचार विमर्श करना चाहिए। वेन ने कहा कि ब्रह्मपुत्र नदी पर बनाये जा रहे बांध निचले इलाकों में रहने वाले लोगों के हितों को प्रभावित करने के लिए नहीं डिजाइन किये गये।
100 अरब डॉलर के व्यापार का लक्ष्य......
भारत और चीन ने 2015 तक द्विपक्षीय व्यापार 100 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य तय किया है और व्यापार असंतुलन को कम करने के लिए चीनी बाजार में भारतीय निर्यात को बढावा देने के उपायों पर सहमति जताई है। दोनों पक्षों ने द्विपक्षीय व्यापार एवं निवेश संबंधों के प्रगाढ़ होने पर संतोष जताते हुए व्यापार तथा आर्थिक सहयोग को संतुलित करने पर सहमति व्यक्त की। भारत और चीन के बीच इस वर्ष द्विपक्षीय व्यापार 60 अरब डॉलर पहुंच जाने का अनुमान है। औषधि क्षेत्र तथा सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में आदान प्रदान तथा सहयोग बढाने और कृषि उत्पादों पर बातचीत जल्दी पूरी करने पर भी जोर दिया गया है। इसमें चीन के राष्ट्रीय और क्षेत्रीय व्यापार मेलों में भारतीय कंपनियों की भागीदारी को प्रोत्साहित करने की बात भी कही गई है।
दोनों देशों के बीच छह समझौते.........
बैठक के बाद दानों पक्षों ने 6 समझौतों पर हस्ताक्षर किए। पर्यावरण अनुकूल प्रौद्योगिकी के अलावा दोनों पक्षों ने दोनों देशों के बीच बहने वाली नदियों में जलप्रवार के आंकड़ों के आदान प्रदान, मीडिया और सांस्कृतिक क्षेत्र में पारस्परिक सम्पर्क बढाने की व्यवस्था करने पर सहमत हुए है। इसके अलावा दोनों के बीच दो समझौते बैंकिंग क्षेत्र में सहयोग से संबंधित हैं। ये समझौते क्रमशः भारतीय रिजर्व बैंक और चाइनीज बैंक नियामक आयोग तथा भारत के निर्यात आयात बैंक (एक्जिम बैंक) और चीन के चाइनीज विकास बैंक के बीच हुए हैं।
चीन ने कहा ‘भारत महान पड़ोसी’........
चीनी प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ ने सकारात्मक बोल बोलते हुए भारत की ‘महान पड़ोसी’ के रूप में प्रशंसा की और विश्वास व्यक्त किया कि उनकी यात्रा के दौरान दोनों देश ‘महत्वपूर्ण रणनीतिक आम सहमति’ पर पहुंचेंगे तथा द्विपक्षीय संबंध ‘नई ऊंचाइयों’ पर जाएंगे। यहां राष्ट्रपति भवन में समारोहपूर्ण स्वागत के बाद वेन ने संवाददाताओं से कहा कि मुझे उम्मीद है कि मेरी यात्रा विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग को व्यापक करने में मदद करेगी और हमारी मित्रता तथा सहयोग को नई ऊंचाइयों पर ले जाएगी। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की मौजूदगी में वेन ने कहा कि चीन और भारत के पास अब सहयोग विस्तारित करने तथा समान विकास लक्ष्यों को हासिल करने के अच्छे अवसर हैं।
सीमा विवाद........
माओत्सेतुंग ने चीन के विस्तार से संबंधित वसीयत में लिखा है कि तिब्बत उस हाथ की हथेली है जिसकी पांच उंगलियां लद्दाख, सिक्किम, नेपाल, भूटान और नेफा (वर्तमान अरुणाचल प्रदेश) हैं। इन सभी इलाकों को आजाद करके चीन में शामिल करना आवश्यक है। अब चीनी नेतृत्व इस सपने को साकार करने की कवायद में लगा है। अक्टूबर, 1949 में साम्यवादी क्रांति के बाद चीन की नई सरकार ने तिब्बत पर अपना अधिकार घोषित कर दिया। वर्तमान में भारत और चीन के बीच संपूर्ण सीमा लगभग करीब 4000 किलोमीटर लंबी है। 1959 में चीन की ओर से तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री नेहरू को पत्र लिखा गया, जिसमें कहा गया कि चीन की किसी सरकार ने मैकमोहन लाइन को वैध नहीं माना है। इसके पीछे मकसद तिब्बत को हड़पना था। 1914 के शिमला सम्मेलन में मैकमोहन लाइन को भारत और चीन के बीच सीमारेखा माना गया था।
अरुणाचल प्रदेश/अक्साई चीन.......
चीन ने अरुणाचल प्रदेश के तवांग इलाके को दक्षिणी तिब्बत का नाम दिया है। वह अरुणाचल प्रदेश को चीन के नक्शे में दिखाता है। यही वजह है कि वह अरुणाचल प्रदेश केलोगों को वीजा नहीं देता है। भारत की उत्तर-पश्चिमी सीमा पर अक्साई चिन के 38 हजार किमी. हिस्से पर चीन ने अवैध कब्जा जमा रखा है। इसके अतिरिक्त पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर का तकरीबन 5 हजार वर्ग किमी. हिस्सा भी विवादित है। इसे 1963 में पाकिस्तान ने चीन को दे दिया था।
सिकिक्म.......
2005 तक चीन सिक्किम को भारत के अंग की बजाय एक स्वतंत्र देश मानता था। लेकिन इस वर्ष वह इसे भारत का हिस्सा मानने को तैयार हो गया। लेकिन चीन प्रायः सिक्किम में सीमा (वास्तविक नियंत्रण रेखा) का उल्लंघन करता रहा है।
सीमा विवाद को हल करने के लिए दोनों देशों के बीच 1980 से विचार-विमर्श का दौर चालू है। 1993 और 1996 में वास्तविक नियंत्रण रेखा और सीमा पर शांति बरकरार रखने के लिए दो महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर हुए।
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