Saturday, 13 July 2013

समलैंगिकता : समाजशास्त्रीय विवेचन


समलैंगिकता के संबंध में भी वैसी ही वर्जनाएँ तथा अनुमतियां होती हैं, जैसी कि अन्य प्रकार की यौन गतिविधियों में। हिमालय के लैपचा लोगों में यदि कोई पुरूष आंडू सूअर का मांस खा लेता है तो उसे समलैंगिक माना जाता है। लैपचा का कहना है कि उनके यहाँ समलैंगिकता अनजानी है और उसकी चर्चा भी अरूचिकर मानी जाती है। अनेक समाज यह मानते हैं कि उनके यहाँ समलैंगिकता का अस्तित्व नहीं है। इसलिए प्रतिबंधों वाले समाजों में समलैंगकता के विषय में कोई जानकारी उपलग्ध नहीं है। मुक्त समाजो में समलैंगिकता में विविधता होती है। कुछ समाजों में समलैंगिकता विद्यमान तो है, किंतु यह कुछ विशोष अवसरों तथा व्यक्तियों तक सीमित रहती है। उदाहरण के लिए, दक्षिणपिश्चमी संयुक्त राज्रू के पपागों में कुछ आनंदोत्सव की राते’’ होती है, जिनमें समलैंगिक प्रवृत्तियों की अभिव्यक्ति की जा सकती है। पपागो में अनेक ऐसे पुरूष होते थे, जो स्ति्रयों जैसे वस्त्र पहनते थे, उनके जैसे कार्य करते थे ओर विवाहित नहीं भी होते थे तो भी उनके पास अन्य पुरूष आते थे। स्ति्रयों को इस प्रकार की भावनाएँ प्रदिशर्त करने की अनुमति नहीं थी। वे आनंदोत्सवों में सम्मिलित हो सकती थी, किंतु केवल पति से अनुमति प्राप्त करके तथा वे पुरूषों के समान व्यवहार नहीं कर सकती थी।
अन्य समाजों में समलैंगिकता और भी व्यापक रूप से फैली हुई है। उत्तर अफ्रीका के सिवान लोगों में सभी पुरूषों से समलैंगिकता की अपेक्षा की जाती है। वास्तव में, पिताअपने अविवाहित पुत्रों को उनसे आयु में बडें लोगों के पास समलैंगिक व्यवस्था के अनुसार भेजते थे। सिवान रिवाज के अनुसार एक पुरूष का एक ही अन्य पुरूष से संबंध होता था। सरकार के भय के कारण यह कार्य गुप्त बन गया था, किंतु सन 1909 से पहले यह कार्य खुले आम होता था। लगभग सभी पुरूष लड़कपन में समलैंगिक संबंध कर चुके होते थे। बाद में 16 से 20 वर्ष की अवस्था में उनका विवाह लड़कियों से होता था। सबसे अधिक समलैंगिकता को प्रोत्साहन देने वाले समाजो में से एक न्यू गिनी का ऐटोरो समाज था, जिसमें लोग विपरीत लिंग के व्यक्तियों के बजाए समलैंगिक संबंधों को पसंद करते थे। वर्ष में 260 दिन विपरीत लिंग के लोगों के साथ यौन संबंध वर्जित होते थे; और घर या बगीचे के निकट भी। इसके विपरीत पुरूषों के बीच समलैंगिक संबंध किसी भी समय वर्जित नहीं होते थे और यह विश्वास किया जाता था कि ऐसे संबंधों से फसल भरपूर होती है और लड़के बलवान बनते है।
भारतीय समाज में भी देखा जाए तो समलैंगिकता कोई नई बात नहीं है। प्राचीन काल में राजशासन में राजा कई विवाह करते थे और अपनी पत्नी के साथ ज्यादा से ज्यादा एक या दो बार ही यौन संबंध स्थापित करते थे और इसी प्रकार उनकी कई रखैले होती थी जिनके साथ केवल राजा ही यौन संबंध स्थापित कर सकता था। राजाओं के इस्तेमाल के बाद इन सभी को एक जगह पर रहने दिया जाता था और इनके निवास स्थानों पर किसी पुरूष का प्रवेश वर्जित होता था ऐसी स्थिति में स्वभाविक यौन तृप्ति के लिए यह महिलाएँ समलैंगिक संबंध स्थापित करती थी। भारतीय समाज समलैंगिकता पर पूर्णतः मौन है लेकिन गुप्त रूप से इस प्रकार के संबंध यहाँ भी रहे है।
प्रतिबंधता के कारण
किसी समाज में अन्य समाजों की तुलना में अधिक प्रतिबंध क्यों होते है, इस प्रश्न का उत्तर देने से पूर्व हमें यह जानना आवश्यक है कि क्या सभी प्रतिबंध एक साथ लगाए जा सकते है। अभी तक किए गए शोधकार्य से पता चलता है कि जिन समाजों में विपरीतलिंगी यौन संबंधों का कोई पहलू प्रतिबंधित होता है, उनमें अन्य पहलूओं पर भी प्रतिबंध होते हे। इस प्रकार, जिन समाजों में बालको द्वारा यौन संबंधों की अभिव्यक्तियों को बुरी नजर से देखा जाता है, उनमें विवाहपूर्व तथा विवाहेत्तर यौन संबंधों को भी उचित नहीं माना जाता। इसके अतिरिक्त ऐसे समाजों में शालीन पहनावे और बातचीत में संयम बरतने पर बल दिया जाता है। किंतु जो समाज विपरीतलैंगिक संबंधों को प्रतिबंधित करते है, उनमें समलैंगिक संबंधों का प्रतिबंधित होना आवश्यक नहीं । यह आवश्यक नहीं कि जिन समाजों में विवाहपूर्व यौन संबंध प्रतिबंधित हो, वे समलैंगिक संबंधों को कम या अधिक प्रतिबंधति करें। विवाहेत्तर यौन संबंधों की बात अलग है। जिन समाजों में समलैंगिक संबंध अधिक होते है, वे आमतौर पर पुरूषों के विवाहेत्तर विपरीतलैंगिक संबंधों को उचित नहीं मानते। यदि हम प्रतिबंधों की बात करे तो हमें समलैंगिक तथा विपरीतलैंगिक संबंधों के विषय में अलगअलग विचार करना होगा।
कुछ समाजों में समलैंगिक संबंध अधिक होते है, जबकि अन्य समाज उन्हें सहन नहीं करते। लोगों के समलैंगिक संबंधों में रूचि होने की अनेक मनोवैज्ञानिक व्याख्याएँ है, और इनमें से अनेक व्याख्याओं का संबंध बालकों के मातापिता से आरंभिक संबंधों से जुडा है। अभी तक हुए शोध कार्य से कोई सही तस्वीर उभर कर सामने नहीं आई है। यद्यपि पुरूषों के समलैंगिक संबंधों के कुछ संभावित कारण असंमजस में डालने वाले है।
इनमें से एक खोज यह है कि जिन समाजों में विवाहिता स्ति्रयों द्वारा गर्भपात तथा शिशुहत्या वर्जित है उनमें पुरूषों के समलैंगिक संबंधों को भी सहन नहीं किया जाता। यह और अन्य खोजें इस दृष्टिकोण की पुष्टि करती है कि ऐसे समाजों में समलैंगिक संबंधों को उचित नहीं माना जाता, जो जनसंख्या ब़ाना चाहते है। समलैंगिकता से ऐसा हो सकता है। ऐसे समाज उन सब चीजों के विरूद्ध होंगे जिनसे जनसंख्या की वृद्धि में रूकावट आए। यदि समलैंगिक संबंधों के कारण विपरीतलिंगी संबंधों में की आए तो समलैंगिकता का इस पर प्रभाव पड़ेगा। विपरीतलिंगी संबंध जितने कम होंगे, गर्भाधान की संभावना भी उतनी कम होती जाएगी। इस प्रकार के प्रतिबंध होने का कारण इसलिए भी पता चलता हैं कि जिन क्षेत्रों में दुर्भिक्ष पडता है उनमें समलैंगिक संबंधों को अनुमति मिलने की अधिक संभावना होनी चाहिए। दुर्भिक्ष तथा भोजन की कमी होने पर जनसंख्या का बोझ संसाधनों पर पड़ता है, इसलिए जनसंख्या में ब़ोत्तरी को रोकने से समलैंगिक संबंधों को सहन करने कीही नहीं बल्कि प्रोत्साहन देने की भी संभावना हो सकती है।
सोवियत संघ के इतिहास से कुछ और उपयुक्त जानकारी मिल सकती है। सन 1917 में क्रांति के कष्टप्रद दिनों में गर्भपात तथा समलैंगिकता को रोकने वाले कानून हटा लिए गए थे और शिशुजन्म को हतोत्साहित किया जाने लगा किंतु 193436 के दौरान इस नीति को बिल्कुल उलट दिया गया। गर्भपात तथ समलैंगिकता को फिर से अवैध करार दिया गया और समलैंगिक संबंध रखने वाले लोगों को गिरफ्तार किया जाने लगा। साथ ही अधिक बालको को जन्म देने वाली माताओं को पुरस्कृत किया जाने लगा।
उपरोक्त विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है कि पुरूषों के मध्य समलैंगिक संबंध अधिक खुले हुए होते थे परंतु महिलाओं के बीच इन संबंधों को पूर्णरूपेण गुप्त ही रखा जाता रहा है। इसका एक कारण यह हो सकता है कि जिन समाजों में महिलाओं की संख्या कम हो जाती है वहाँ यौन तृप्ति के लिए पुरूषों के मध्य इस प्रकार के संबंध स्थापित होते रहे होंगे। समलैंगिकता के संबंध में यह भी स्पष्ट होता है कि जनसंख्या कम करने के लिए इस प्रकार के संबंध अस्तित्व में आए परंतु जनसंख्या कम करने के कई और भी उपाय हो सकते है इसलिए समलैंगिकता के लिए यह कारण उपयुक्त नहीं लगता है।
आदि समाजों में शिकार के लिए पुरूषों को दूर दूर तक की यात्राएँ करनी पडती थी इस प्रकार पुरूषों और निवास पर अकेली रूकी महिलाओं के मध्य इस प्रकार के संबंध सामान्य रूप से बन सकते है। यह भी कहा जा सकता है कि केवल समलैंगिक ही नहीं वरन पशुमैथुन संबंध भी सामान्य रहे होंगे।
पुराने समय में भी राजाओं के पास कई महिलाएँ होती थी जिनके साथ उसके शारीरिक संबंध होते थे, राजा सभी महिलाओं के साथ शायद ही कभी एक या दो से अधिक बार संबंध बनाते होगें परंतु यह नियम था कि राजा जिन महिलाओं से शारीरिक संबंध बनाते वे महिलाएँ किसी अन्य पुरूष के साथ शारीरिक संबंध नहीं बना सकती थी, ऐसी महिलाओं को एक साथ रखा जाता था। यौन असंतुष्टि के कारण यह महिलाएँ आपस में ही समलैंगिक संबंध बनाती रहती। अतृप्त यौन असंतुष्टि भी समलैंगिक संबंधों के बनने का एक मुख्य कारण रहता है।
पुरूषों के मध्य इस प्रकार के संबंध महिलाओं की अपेक्षा अधिक खुले रहे इसका एक कारण यह हो सकता है कि पुरूषसत्तात्मकता में पुरूष अपने पौरूष का परिचय इस प्रकार के संबंधों के माध्यम से भी देते रहे होंगे और महिलाओं के मध्य इस प्रकार के संबंध इसलिए गुप्त रखे गए होंगे क्योंकि यदि महिलाओं के मध्य इस प्रकार के संबंध बनते होंगे तो यह पुरूषों के लिए बडी शर्म की बात रही होगी कि वह अपनी पत्नी को यौन तृप्ति नहीं दे सके।
कुछ समयपूर्व प्रदर्शित फिल्मों में भी समलैंगिकता पर जोर दिया हैं जिनमें से सबसे अधिक चर्चा में रही ॔फायर’ और दूसरी फिल्म रही ॔गर्लफ्रेंड’ दोनों ही फिल्मों में महिला समलैंगिक संबंधों को दर्शाया गया परंतु दोनों फिल्मों में समलैंगिक संबंध बनने के कारण अलगअलग थे; ॔फायर’ में एक पति से असंतुष्ट पत्नी अपनी ननद के साथ समलैंगिक संबंध बनाती है वहीं ॔गर्लफ्रेंड’ में साथ रह रही दो दोस्तों के बीच इस तरह के संबंध बनते है जिनमें से एक लडकी अपने बचपन से ही पुरूषों से कुछ कारणों से नफरत करती है। ये दोनों ही कारण समलैंगिकता के उपयुक्त कारण हो सकते है। भारतीय समाज में दोनों ही फिल्मों का पुरजोर विरोध किया गया है जबकि समलैंगिकता विरोध या संस्कृति हनन का विषय नहीं है।
समलैंगिकता का एक कारण यह भी हो सकता है कि समलैंगिक सदस्य बचपन से ही समलिंगियों के मध्य रहा हो। यह शोध का विषय हो सकता है कि केवल भाइयों या केवल बहिन वाले सदस्यों में किस प्रकार से लैंगिक परिवर्तन आते है या यह भी देखा जा सकता है कि कई विपरीत लिंगियों के बीच किस तरह के लैंगिक परिवर्तन आते है। बचपन में हुआ लैंगिक समाजीकरण आगे कितना गहरा प्रभाव छोडता है, इस बात का निष्कर्ष भविष्य में होने वाले सामाजिक तथा मनोवैज्ञानिक अध्ययनों से निकलेगा। इन विषयों पर शोध होना शेष है। फिर भी यह कहा जा सकता है कि समलैंगिकता एक मनोसामाजिक तथ्य है जिसके कारण समाज में ही है।

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