Tuesday 16 July 2013

IMPORTANT SUMMITS HELD ON 2012-13

BRICS (Brazil, Russia, India, China and South Africa) Summits

• 4th BRICS Summit 2012 – New Delhi, India
• 5th BRICS Summit 2013 – Durban, South Africa

G-8 Annual Summits Group of Eight (G8) Countries – France, Germany, Italy, Japan, United Kingdom, United States of America, Canada, Russia.

• 37th G8 Meeting 2011 – Deauville, France
• 38th G8 Meeting 2012 – David camp, USA
• 39th G8 Summit 2013 – County Fermanagh, UK
• 40th G8 Summit 2014 – Russia

G-20 Summits

• 7th G 20 Meeting 2012 – Los Cabos, Mexico
• 8th G 20 Meeting 2013 – Saint Petersburg, Russia
• 9th G 20 Meeting 2014 – Brisbane, Australia

SAARC Summits SAARC – South Asian Association for Regional Cooperation

• 17th SAARC Summit 2011– Addu, Maldives
• 18th SAARC Summit 2013 – Kathmandu,Nepal

ASEAN Summits ASEAN – Association of South East Asian Nation

• 19th ASEAN Summit 2011 (November) – Bali, Indonesia
• 20th ASEAN Summit 2012 (April)– Phnom penh, Cambodia
• 21th ASEAN Summit 2012 (November)– Phnom penh, Cambodia

ASEAN-India Summit

• 9th ASEAN-India Summit 2011 – Bali, Indonesia
• 10th ASEAN-India Summit 2012 – Phnom penh, Cambodia

East Asia Summit (EAS) EAS meetings are held after annual ASEAN leaders’ meetings.

• 6th East Asia Summit 2011 – Bali, Indonesia
• 7th East Asia Summit 2012 – Phnom penh, Cambodia

IBSA Summits IBSA Dialogue Forum - India, Brazil, South Africa.

• 5th IBSA Summit 2011 – Pretoria, South Africa
• 6th IBSA Summit 2013 – India

APEC Summits APEC – Asia Pacific Economic Cooperation

• 23rd APEC summit 2011 – Honolulu, USA
• 24th APEC Summit 2012 – Vladivostok,Russia
• 25th APEC Summit 2013 – Medan/Jakarta, Indonesia
• 26th APEC Summit 2014 – China
• 27th APEC Summit 2015 – Philippines
• 28th APEC Summit 2016 – Lima, Peru

OPEC Seminars OPEC – Organization of Petroleum Exporting Countries

• 4th OPEC International Seminar 2009 – Vienna, Austria
• 5th OPEC International Seminar 2012 – Vienna, Austria

NAM Summits NAM – Non-aligned Movement

• 16th NAM Summit 2012 – Tehran, Iran
• 17th NAM Summit 2015 – Caracas,Venezuela

SCO Meetings SCO – Shanghai Cooperation Organization

• SCO Meeting 2011 – Astana, Kazakhstan
• SCO Meeting 2012 – Beijing, China
• SCO Meeting 2013 – Kyrgyzstan

NATO (North Atlantic treaty organization) international conference on Afghanistan will be held in Chicago (USA)

Asian Development Bank (ADB) Annual Meetings Annual meeting of the board of governors of the Asian Development Bank (ADB) held every year.

• ADB Annual Meeting 2012 – Manila, Philippines
• ADB Annual Meeting 2013 – New Delhi, India

WTO Ministerial Conferences
• 8th WTO Ministerial Conferences2011 – Geneva, Switzerland
• 9th WTO Ministerial Conferences2013 (Expected) -Bali, Indonesia

नाटो:एक विश्लेषण



नार्थ एटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन (नाटो), " द (नॉर्थ)अटलांटिक एलायंस" भी कहा जाता है, एक सैन्य गठबंधन् है,जिसकी स्थापना  4 अप्रैल, 1949 को उत्तर अटलांटिक संधि पर हस्ताक्षर के साथ हुई। नाटो का मुख्यालय ब्रुसेल्स (बेल्जियम) में है। संगठन ने सामूहिक सुरक्षा की व्यवस्था बनाई है, जिसके तहत सदस्य राज्य बाहरी हमले की स्थिति में सहयोग करने के लिए सहमत होंगे।
गठन के शुरुआत के कुछ वर्षों में यह संगठन एक राजनीतिक संगठन से अधिक नहीं था। लेकिन कोरियाई युद्ध ने सदस्य देशों को प्रेरक का काम किया और दो अमरीकी सर्वोच्च कमांडर के दिशानिर्देशन में एक एकीकृत सैन्य संरचना निर्मित की गई। लॉर्ड इश्मे पहले नाटो महासचिव बने, जिनकी संगठन के उद्देश्य पर की गई टिप्पणी, "रुसियों को बाहर रखने, अमरीकियों को अंदर और जर्मनों को नीचे रखने" (के लिए गई है।) खासी चर्चित रही। यूरोपीय और अमरीका के बीच रिश्तों की तरह ही संगठन इसकी ताकत घटती-बढ़ती रही। इन्हीं परिस्थितियों में फ्रांस ने स्वतंत्र परमाणु निवारक बनाते हुए नाटो की सैनिक संरचना से 1966 से अलग हो गया।
1989 में बर्लिन की दीवार के गिरने के बाद संगठन का पूर्व की तरफ बाल्कन हिस्सों में विस्तार हुआ और वारसा संधि से जुड़े हुए अनेक देश 1999 और 2004 में इस गठबंधन में शामिल हुए। 1 अप्रैल 2001 को अल्बानिया और क्रोएशिया के प्रवेश के साथ गठबंधन की सदस्य संख्या बढ़कर 27 हो गई। संयुक्त राज्य अमेरिका में 11 सितंबर, 2001 के आतंकवादी हमलों के बाद नाटो नई चुनौतियों का सामना करने के लिए नए सिरे से कर रहा है, जिसके तहत अफ़ग़ानिस्तान में सैनिकों की और इराक में प्रशिक्षकों की तैनाती की गई है।
बर्लिन प्लस समझौता नाटो और यूरोपीय संघ के बीच 16 दिसंबर 2002 को बनाया का एक व्यापक पैकेज है, जिसमें यूरोपीय संघ को किसी अंतरराष्ट्रीय विवाद की स्थिति में कार्रवाई के लिए नाटो परिसंपत्तियों का उपयोग करने की छूट दी गई है, बशर्ते नाटो इस दिशा में कोई कार्रवाई नहीं करना चाहता हो। नाटो के सभी सदस्यों की संयुक्त सैन्य खर्च दुनिया के रक्षा व्यय का 70% से अधिक है, जिसका से संयुक्त राज्य अमेरिका अकेले दुनिया का कुल सैन्य खर्च का आधा हिस्सा खर्च करता है औरब्रिटेनफ्रांसजर्मनी और इटली 15% खर्च करते हैं।
18 मार्च 1948को बेल्जियमनीदरलैण्डलग्ज़म्बर्गफ्रांस और यूनाइटेड किंगडम द्वारा की गई ब्रुसेल्स की संधि को नाटो समझौते की पहली कड़ी माना जाता है। इस संधि और सोवियत बर्लिन अवरोध ने सितंबर 1948 में पश्चिमी यूरोपीय संघ सुरक्षा संगठन के गठन का मार्ग प्रशस्त किया, लेकिन सोवियत संघ की सैनिक शक्ति का मुकाबला करने को संयुक्त राज्य अमेरिका की भागीदारी आवश्यक मानी गई और इसके तत्काल बाद ही नए सैन्य गठबंधन की चर्चा शुरू हो गई।
चर्चा का परिणति नॉर्थ एटलांटिक ट्रीटी के रूप में सामने आई, जिस पर 4 अप्रैल 1949 को वाशिंगटन डी.सी. में हस्ताक्षर किए गए। इसमें ब्रुसेल्स संधि में शामिल पांच राज्यों, बेल्जियमनीदरलैण्डलग्ज़म्बर्गफ्रांस और यूनाइटेड किंगडम के साथ संयुक्त राज्य अमेरिकाकनाडापुर्तगालइटलीनार्वेडेनमार्क और आइसलैंड शामिल थे। 

नाटो के सदस्य देशों का 25वां शिखर सम्मेलन 20 मई को अमेरिका के शिकागो में  हुआ। दो दिवसीय सम्मेलन में मुख्य रूप से अफगानिस्तान, नाटो के क्षमता निर्माण और साझेदारी संबंध आदि विषयों पर विचार विमर्श किया गया ।
यह नवंबर 2010 में लिस्बन शिखर सम्मेलन में नाटो के 28 सदस्य देशों के नेताओं द्वारा नयी रणनीतिक विचारधारा पारित किए जाने के बाद पहला सम्मेलन है और पिछले 13 वर्ष में पहली बार सम्मेलन अमेरिका में आयोजित हो हुआ है।
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने उद्घाटन समारोह में भाषण देते हुए कहा कि नाटो के सदस्य देश नए क्षमता निर्माण में सक्षम हैं और 21वीं सदीं की सुरक्षा की नयी चुनौतियों का सामना करने के लिए विभिन्न पक्षों के संसाधनों का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके साथ शिकागो शिखर सम्मेलन अफगानिस्तान की अंतरिम योजना का ठोस प्रबंध करके नाटो के विश्व साझेदारी संबंध नेटवर्क को मजबूत करेगा।
नाटो के महासचिव फोग़ रासमुसेन ने कहा कि शिकागो शिखर सम्मेलन में सिलसिलेवार अंतर्राष्ट्रीय सहयोग परियोजनाएं पारित की जाएंगी।
नाटो के सदस्य देशों समेत 60 देशों व संगठनों के प्रतिनिधियों ने शिकागो शिखर सम्मेलन में भाग लिया। मिसाइल भेदी व्यवस्था पर अमेरिका व नाटो के बीच गंभीर मतभेद होने के चलते रूसी नेता इस सम्मेलन में हिस्सा नहीं लिया...........

परमाणु अप्रसार संधि-एक विवेचन



परमाणु अप्रसार सन्धि में देशों की सहभागिता...........

            देश जिन्होने हस्ताक्षर किये       औरअनुमोदित किया                                                                                Acceded or succeeded
        देश जो मान्यता-प्राप्त नहीं हैं; सन्धि को स्वीकारते हैं
             वापस लिया 
█   █ अहस्ताक्षरी
परमाणु अप्रसार संधि को एनपीटी के नाम से जाना जाता है। इसका उद्देश्य विश्व भर में परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने के साथ-साथ परमाणु परीक्षण पर अंकुश लगाना है। 1 जुलाई 1968 से इस समझौते पर हस्ताक्षर होना शुरू हुआ। अभी इस संधि पह हस्ताक्षर कर चुके देशों की संख्या 190 है। जिसमें पांच के पास आण्विक हथियार हैं। ये देश हैं- अमेरिकाब्रिटेन, फ़्रांस,रूस और चीन। सिर्फ चार संप्रभुता संपन्न देश इसके सदस्य नहीं हैं। ये हैं- भारतइजरायलपाकिस्तान और उत्तरी कोरिया एनपीटी के तहत भारत को परमाणु संपन्न देश की मान्यता नहीं दी गई है। जो इसके दोहरे मापदंड को प्रदर्शित करती है। इस संधि का प्रस्ताव आयरलैंड ने रखा था और सबसे पहले हस्ताक्षर करने वाला राष्ट्र है फिनलैंडइस संधि के तहत परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र उसे ही माना गया है जिसने 1 जनवरी 1969 से पहले परमाणु हथियारों का निर्माण और परीक्षण कर लिया हो। इस आधार पर ही भारत को यह दर्जा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नहीं प्राप्त है। क्योंकि भारत ने पहला परमाणु परीक्षण 1974में किया था। उत्तरी कोरिया ने इस सन्धि पर हस्ताक्षर किये, इसका उलंघन किया और फिर इससे बाहर आ गया।

व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (सीटीबीटी)



व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (सीटीबीटी) को ही कांप्रेहेन्सिव टेस्ट बैन ट्रीटी कहा जाता है। यह एक ऐसा समझौता है जिसके जरिए परमाणु परीक्षणों को प्रतिबंधित किया गया है। यह संधि 24 सितंबर 1996 को अस्तित्व में आयी। उस समय इस पर 71 देशों ने हस्ताक्षर किया था। अब तक इस पर 178 देशों ने हस्ताक्षर कर दिए हैं। भारत और पाकिस्तान ने सीटीबीटी पर अब तक हस्ताक्षर नहीं किया है। इसके तहत परमाणु परीक्षणों को प्रतिबंधित करने के साथ यह प्रावधान भी किया गया है कि सदस्य देश अपने नियंत्रण में आने वाले क्षेत्रें में भी परमाणु परीक्षण को नियंत्रित करेंगे।

आतंकवाद और गांधीवाद



महात्मा गांधी का संदेश अगर कहीं बहुत कमजोर और असहाय नजर आता है
तो वह आतंकवाद का मुद्दा है। जब शहर-दर-शहर बमविस्फोट हो रहे हों और 
निर्दोष तथा अनजान लोगों की जान जा रही हो तथा आतंकवादी समूह इस 
तरह प्रसन्न हो रहे हों जैसे उन्होंनेकिसी  महान काम को अंजाम दे दिया हो
उस वक्त हम गांधी की किस चीज का अनुकरण कर सकते हैंआतंकवाद की 
उग्रतर हो रही समस्या का समाधान करने के लिए क्या गांधीवाद के पास कोई
 कार्यक्रम है?
हम जानते हैं कि हिटलर के उदय और द्वितीय विश्व युद्ध के समय में 
भी गांधी जी को निरुत्तर करने के लिए उनसे इस तरहके सवाल किए 
जाते थे। लेकिन महात्मा के पास सत्य और अहिंसा की ऐसी अचूक दृष्टि 
थी कि वे कभी भी लाजवाब नहीं हुए। उनका कहना था कि अगर किसी 
आक्रमणकारी देश की सेना ने हम पर आक्रमण कर दिया हैतो हमारा 
कर्तव्य यह है कि हम निहत्थों की मानव दीवार बना कर उसके सामने खड़े 
हो जाएं। सेना आखिर कितने लोगों की जान लेगीअंत में वह इस अहिंसक 
शक्ति के सामने हथियार डाल देगी और आक्रमण करने वाला तथा जिस पर 
आक्रमण हुआ हैवह दोनों फिर से भाई-भाई हो जाएंगे। जब फासिस्ट जर्मनी 
ने इंग्लैंड पर हमला किया थातो अंग्रेजों को गांधी जी की सलाह यही थी। 
लेकिन इस पर किसी ने अमल नहीं किया। युद्ध का जवाब युद्ध से दिया गया। 
शायद यही वजह है कि दूसरा महायुद्ध समाप्त होने के बाद से धरती से युद्ध और 
हथियार की समस्या खत्म नहीं हुई है।
      लेकिन आतंकवाद की समस्या तो युद्ध से भी अधिक जटिल है। युद्ध में दुश्मन प्रत्यक्ष 
होता हैजब कि आतंकवादी छिप कर वार करता है। इस सात परदे में छिपे हुए खूंखार 
जानवर के सामने अहिंसा की ताकत को कैसे आजमाया जाएइस संदर्भ में निवेदन यह 
है कि जब भी आतंकवाद के गांधीवादी समाधान के बारे में पूछा जाता हैतो इरादा यह 
होता है कि सारी वर्तमान व्यवस्था यूं ही चलती रहे और तब बताओ कि गांधीवाद आतंकवाद 
को खत्म करने का क्या तरीका सुझाता है। क्या यह सवाल कुछ इस तरह का सवाल नहीं है 
कि मैं अभी की ही तरह आगे भी खाता-पीता रहूंमुझे अपनी जीवन चर्या में कोई परिवर्तन 
 करना पड़ेतब बताओ कि मेरी बीमारी ठीक करने का नुस्खा तुम्हारे पास क्या है। विनम्र 
उत्तर यह है कि यह कैसे संभव हैस्वास्थ्य लाभ करने के लिए वह जीवनशैली कैसे उपयुक्त 
हो सकती है जिससे बीमारी पैदा हुई हैजिन परिस्थितियों के चलते आतंकवाद पनपा हैउन 
परिस्थितियों के बरकरार रहते आतंकवाद से संघर्ष कैसे किया जा सकता हैगांधीवाद तो क्या
किसी भी वाद के पास ऐसी गोली या कैप्सूल नहीं हो सकता जिसे खाते ही हिंसा के दानव को 
परास्त किया जा सके। जब ऐसी कोशिशें नाकाम हो जाती हैतो यह सलाह दी जाती है कि हमें 
आतंकवाद के साथ जीना सीखना होगा।
अगर हम गांधी जी द्वारा सुझाई गई जीवन व्यवस्था को स्वीकार करने के लिए प्रस्तुत हैं,
 तो जो समाज हम बनाएंगेउसमें आतंकवाद की समस्या पैदा हो ही नहीं सकती। आतंकवाद 
के दो प्रमुख उत्स माने जा सकते हैं। एककिसी समूह के साथ अन्याय और उसके जवाब में 
हिंसा की सफलता में विश्वास। दोआबादी की सघनताजिसका लाभ उठा कर विस्फोट के 
द्वारा जानमाल की क्षति की जा सके और लोगों में डर फैलाया जा सके कि उनका जीवन 
कहीं भी सुरक्षित नहीं है। गांधीवादी मॉडल में जीवन की व्यवस्था इस तरह की होगी कि 
भारी-भारी जमावड़े वाली जगहें ही नहीं रह जाएंगी। महानगर तो खत्म ही हो जाएंगे
क्योंकि वे निहायत अस्वाभाविक बस्तियां हैंजहां जीवन का रस रोज सूखता जाता है। 
लोग छोटे-छोटे आधुनिक गांवों में रहेंगे जहां सब सभी को जानतेहोंगे। स्थानीय उत्पादन 
पर निर्भरता ज्यादा होगी। इसलिए बड़े-बड़े कारखानेबाजारव्यापार केंद्र वगैरह अप्रासंगिक 
हो जाएंगे। रेल,वायुयान आदि का चलन भी बहुत कम हो जाएगाक्योंकि इतनी बड़ी संख्या 
में लोग हर समय तेज वाहनों से आते-जाते रहेंयहपागलपन के सिवाय और कुछ नहीं है। 
वर्ष में एक-दो बार लाखों लोग अगर एक जगह जमा होते भी हैं जैसे कुंभ के अवसर पर या 
कोई राष्ट्रीय उत्सव मनाने के लिएतो ऐसी व्यवस्था करना संभव होगा कि निरंकुशता 
और अराजकता  पैदा हो। इस तरह भीड़भाड़और आबादी के संकेंद्रण से निजात मिल जाएगी
तो आतंकवादियों को प्रहार करने के ठिकाने बड़ी मुश्किल से मिलेंगे।
लेकिन ऐसी व्यवस्था में आतंकवाद पैदा ही क्योंकर होगाबेशक हिंसा पूरी तरह खत्म 
नहीं होगीलेकिन संगठित हिंसा कीजरूरत नहीं रह जाएगीक्योंकि किसी भी समूह के 
साथ कोई अन्याय होने की गुंजाइश न्यूनतम हो जाएगी। आतंकवादी पागल नहींहोता है। 
वह अपनी समझ से किसी बड़े अन्याय के खिलाफ लड़ रहा होता है। जब ऐसा कोई अन्याय 
होगा ही नहीं और हुआ भी तोतुरंत उसे सुधारा जा सकेगातब आतंकवादी मानसिकता 
क्योंकर बनेगीऐसे समाज में  मुनाफाशोषणदमन आदि क्रमश:इतिहास की वस्तुएं 
बनती जाएंगी। जाहिर हैसत्य और अहिंसा पर आधारित इस व्यवस्था में सांप्रदायिक
नस्ली या जातिगतविद्वेष या प्रतिद्वंद्विता के लिए कोई स्थान नहीं रह जाएगा। हिंसा 
को घृणा की निगाह से देखा जाएगा। कोई किसी के साथ अन्यायकरने के बारे में नहीं सोचेगा। 
क्या इस तरह का समाज कभी बन सकेगापता नहीं। लेकिन इतिहास की गति अगर हिंसा 
से अहिंसाकी ओरअन्याय से न्याय की ओर तथा एकतंत्र या बहुतंत्र से लोकतंत्र की ओर है
जो वह हैतो कोई कारण नहीं कि ऐसा समाजबनाने में बड़े पैमाने पर सफलता  मिले जो 
संगठित मुनाफेसंगठित अन्याय और संगठित दमन पर आधारित  हो। केंद्रीकरण --
सत्ता काउत्पादन का और बसावट का -- अपने आपमें एक तरह का आतंकवाद हैजिसमें 
अन्य प्रकार के आतंकवाद पैदा होते हैं।आतंकवाद सिर्फ वह नहीं है जो आतंकवादी समूहों 
द्वारा फैलाया जाता है। आतंकवाद वह भी है जो सेनापुलिसकारपोरेट जगत तथा 
माफिया समूहों के द्वारा पैदा किया जाता हैजिसके कारण व्यक्ति अपने को अलग-
थलगअसहाय और समुदायविहीन महसूस करता है।
ऐसा नहीं मानना चाहिए कि जिन समाजों में आतंकवाद की समस्या हमारे देश की तरह 
नहीं हैवे कोई सुखी समाज हैं। एक बड़े स्तर पर आतंकवाद उनके लिए भी एक भारी 
समस्या हैनहीं तो संयुक्त राज्य अमेरिका आतंकवाद के विरुद्ध विश्वयुद्ध नहीं चलारहा 
होता। लेकिन जिस जीवन व्यवस्था से आतंकवाद नाम की समस्या पैदा होती हैउससे 
और भी तरह-तरह की समस्याएं पैदाहोती हैंजिनमंे पारिवारिक तथा सामुदायिक 
जीवन का विघटन एवं प्रतिद्वंद्विता का निरंतर तनाव प्रमुख हैं। इसलिए हमें सिर्फ
आतंकवाद का ही समाधान नहीं खोजना चाहिएबल्कि उन समस्याओं का भी समाधान 
खोजना चाहिए जिनके परिवार का एकसदस्य आतंकवाद के नाम से जाना जाता है। इस 
खोज में गांधीवाद सर्वाधिक सहायक सिद्ध होगाऐसा गांधीवादियों का अटल विश्वास है।